’बरसों साथ रहते हैं लोग, पर कोई रिश्ता कायम नहीं होता
कुछ हवाओं पर सवार आते हैं, और हमारा वजूद महका जाते हैं’
कहते तो यही हैं कि सियासत तो कोठेवालियों का दुपट्टा है जो किसी के आंसुओं से तर नहीं होता। पर यह कहावत अब गए दौर की बात हो गई है, सियासत का अंदाज भी बदला है और इसकी तासीर भी। अब पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार को ही ले लीजिए, इस बात से उनका हौंसला टूट गया था इस दफे के यूपी चुनाव में लाख मशक्कत के बाद भी वे अपनी बेटी के लिए एक अदद भगवा टिकट का जुगाड़ नहीं कर पाए। निराशा कुछ इस हद तक परवान चढ़ी कि गंगवार साहब ने सीधे भाजपा के नंबर दो अमित शाह को ही फोन लगा दिया, उन्होंने शाह के समक्ष अर्ज किया-’आठ बार का सांसद हूं, पर अपनी बेटी को एक टिकट तक नहीं दिलवा पाया।’ सूत्रों की मानें तो शाह ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए ’संतोश’ रखने को कहा, साथ ही यह भी कहा कि ‘आप दिल छोटा न करो, हम आपके लिए कुछ बड़ा सोच रहे हैं, आप राजभवन में जाने की तैयारियां शुरू कर दो।’ गंगवार के चेहरे से एकबारगी ही सारी उदासी छंट गई, ठीक वैसे ही जैसे जब उम्मीदों का चांद निकलता है तो आसमां से गहरे, काले बादल छंट जाते हैं। यूपी के बाद आइए अब पटना चलते हैं, मिलते हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से, जब से उनकी कुर्सी गई है वे संघ और भाजपा के विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी सक्रियता के दीदार करवा रहे थे। सुना जा रहा है कि संघ ने उन्हें बुला कर इत्तला दे दी है कि अब उन्हें राजनैतिक मंचों से दूरी बना लेनी चाहिए, क्योंकि आने वाले दिनों में उन्हें एक अहम जिम्मेदारी मिलने जा रही है, जिसका स्वरूप गैर राजनीतिक हो सकता है, पर यह पद संवैधानिक होगा। प्रसाद भी संघ का इशारा समझ गए हैं कि उन्हें भी गवर्नरी का प्रसाद मिलने जा रहा है। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, सौम्य और मृदुभाषी प्रकाश जावड़ेकर। जो रोजाना नियम से भाजपा मुख्यालय आ रहे थे और यहां घंटों समय व्यतीत कर रहे थे। उन्होंने मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर को भी उनकी उम्मीदवारी वापिस लेने के लिए मनाने की कोशिश की पर देवेंद्र फड़णवीस की वजह से बात बनी नहीं। अब सुना जा रहा है कि जावड़ेकर को भी इशारा मिल गया है कि उन्हें एक अहम राज्य का गवर्नर बनाया जा सकता है। यानी आने वाले दिनों में नए महामहिमों की बाढ़ आने वाली है।