छपे शब्दों की ताकत को कम कर के मत आंकिए

July 28 2021


’जी-हुजूरी से अब इंकार करने चला हूं, अपनी कलम को तलवार करने चला हूं
तेरी फिक्र है जो धड़कते हैं छपे शब्दों में, अपनी ज़िद को अखबार करने चला हूं’

अगर आज महात्मा गांधी जीवित होते और ’इंडियन ओपिनियन, ‘सप्ताहिक सत्याग्रह’, ‘द यंग इंडिया’ या फिर ’हरिजन’ जैसा कोई अखबार निकाल रहे होते तो कायदे से वे आज के हालात में अखबार निकालने से मना कर सकते थे, गांधी जी कहते थे कि ‘पत्रकारिता केवल आजीविका कमाने का जरिया नहीं हो सकती, अखबार या संपादक के साथ चाहे जो हो जाए, उसे अपने विचार देश के समक्ष रखने ही चाहिए, अगर उन्हें जनता के दिलों में जगह बनानी है तो उन्हें एकदम अलग धारा का सूत्रपात करना होगा।’ तो क्या दैनिक भास्कर ने गांधी जी के इसी बीज मंत्र को अपनाना चाहा है। मोदी सरकार से भास्कर की रार पुरानी है। सूत्रों की मानें तो भास्कर समूह के एक मालिक सुधीर अग्रवाल की पत्नी ज्योति अग्रवाल और कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी की काॅलेज के जमाने से दोस्ती है। सो, 2014 में राहुल गांधी का किसी भी अखबार को दिया गया पहला इंटरव्यू भास्कर में ही छपा था, वह भी लगभग दो पेज में। कहते हैं कि 2013-14 में इस अखबार ने मोदी के हवाले से एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें मोदी कोष यह कहते हुए उद्दत किया गया था कि ‘कांग्रेस अपने वरिष्ठ नेताओं का हमेशा से अपमान करती रही है, यहां तक कि सरदार पटेल की अंतिम यात्रा में भी नेहरू शामिल नहीं हुए थे। मोदी ने इस पूरी रिपोर्ट को तब मनगढंत बताया था और कहा था कि अखबार ने तो उनसे बात ही नहीं की थी। 2019 में भी जब प्रधानमंत्री मोदी बुला-बुला कर तमाम बड़े अखबारों को इंटरव्यू दे रहे थे तो उसमें भास्कर का नंबर आया ही नहीं। सूत्र बताते हैं कि जब से मोदीनीत सरकार केंद्र में आई है तब से पिछले कोई सात साल से यह अखबार घाटे में चल रहा है। केंद्र और भाजपा शासित राज्यों के सरकारी विज्ञापन भी इसे मिलने लगभग बंद हो गए थे। मजबूरी में अखबार को तेजी से अपने यहां काम कर रहे पत्रकारों और कर्मचारियों की तेजी से छंटनी करनी पड़ रही थी, सो आखिरकार अखबार के मैनेजमेंट ने तय किया कि वह सच के साथ खड़ा होने का साहस दिखाएगा। इसी शहीदी तेवर की परिणति थी कोरोना काल में अखबार की निर्भीक रिपोर्टिंग, मृतकों के सही आंकड़े बताने की ज़िद, गंगा में बहती लाशों के पीछे के सच को छापने का साहस। अखबार ने आग में घी डालने का काम तब किया जब पेगासस जासूसी मामला सामने आने पर उसने स्नूपिंग मामले से जुड़ी गुजरात की एक पुरानी तस्वीर ट्वीट कर दी, फिर तो जैसे कयामत की घड़ी आ गई, भास्कर के साथ जो हुआ वह देश के सामने है।

 
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