’आसमां से कुछ तूने भी तो मांगा होगा
यूं ही चांद उतर नहीं आया है तेरे रुखसार पर’
चूंकि भाजपा के लिए बंगाल में अपनी उपस्थिति बनाए रखना बेहद जरूरी है, सो उसे सौरव गांगुली जैसे एक जीवित बंगाली प्रतिमान को गहरे भगवा रंग में रंगने की आवश्यकता आन पड़ी, ममता बनर्जी के उस चैलेंज को भी भाजपा किंचित गंभीरता से ले रही है जब दीदी ने खुल्लम खुल्ला भाजपा को ललकारा है कि ’अब बीजेपी के लिए बंगाल में ‘नो एंट्री’ है’ सो भाजपा के लिए गांगुली एक तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं।’ भाजपा भले ही उन्हें राज्यसभा में मनोनीत कोटे से ला रही हो पर गांगुली व भाजपा में कोई खिचड़ी पक चुकी है इसका खुलासा इस क्रिकेटर के उस हालिया ट्वीट से सामने आता है जिसमें उन्होंने इशारों-इशारों में कह दिया है ’वह कुछ नया करने की योजना बना रहे हैं’ पिछले दिनों जब गृह मंत्री अमित शाह बंगाल के दौरे पर थे तो बकायदा उन्हें पूरे दल-बल के साथ बंगाल टाईगर के नाम से मशहूर गांगुली ने उन्हें अपने घर खाने पर न्यौता था। दरअसल, गांगुली के पीछे कई वर्षों से भाजपा हाथ धोकर पीछे पड़ी थी कि वे पार्टी में शामिल हो जाएं, पर गांगुली टस से मस नहीं हो रहे थे। इस बार गांगुली की बदली भाव-भंगिमाओं के पीछे उनकी मजबूरियां ज्यादा दिख रही हैं। गांगुली का बीसीसीआई का अध्यक्षीय कार्यकाल इस 27 जुलाई को खत्म हो रहा है। बीसीसीआई यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का अध्यक्ष बनने से पहले वे ‘कैब’ यानी क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष थे, फिर उन्होंने 2019 में बीसीसीआई का कार्यभार संभाला। लोधा कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक किसी भी शख्स को लगातार छह साल अध्यक्ष रहने के बाद 3 साल का अनिवार्य ब्रेक लेना ही होगा। गांगुली ने 3 साल कैब फिर 3 साल निरंतर बीसीसीआई का अध्यक्ष पद संभाला है पर इस बार गांगुली के लिए 3 साल के ’कूलिंग पीरियड’ को ’वेव ऑफ’ करने के लिए बीसीसीआई कोर्ट चली गई है। बीसीसीआई का कहना है कि गांगुली इतना बड़ा नाम है कि उन्हें इस नियम के एक अपवाद के तौर पर देखा जाना चाहिए, यह मामला कोर्ट में लंबित है। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव आदित्य वर्मा जो इस पूरे मामले को कोर्ट में लेकर गए थे, उन्होंने भी अब गांगुली के समर्थन में अपने रंग बदल लिए हैं, उन्होंने भी कुछ नामों पर कंप्रोमाइज करने की कोर्ट में दलील दी है। अपने अनिश्चित भविष्य को देखते हुए गांगुली भी भगवा होने को राजी हो गए हैं, भाजपा की असली दिक्कत 2024 के आम चुनावों में अपनी मौजूदा 18 सीटों को बचाए रखने की है, गांगुली अगर फ्रंट पर आकर खेलें तो यकीनन राज्य में भगवा संभावनाओं को वृहतर आयाम मिलेगा।