गडकरी पर यह सितम क्यों?

September 04 2022


नितिन गडकरी भाजपा के शायद एकमेव ऐसे नेताओं में शुमार हैं जिनकी कथनी व करनी की एकरुपता का हिंदुस्तान लोहा मानता है, मोदी सरकार के किसी एक मंत्री का अगर सबसे शानदार ट्रैक रिकार्ड रहा है तो वे गडकरी ही हैं। संसद में वे जब बेधड़क बोलते हैं तो विरोधी दलों की शाबाशियां भी बटोर ले जाते हैं। 2014 में जब मोदी सरकार पहली बार दिल्ली के निज़ाम पर काबिज हुई तो गडकरी के पास 7 अहम मंत्रालय थे जो आज की तारीख में घटते-घटते मात्र एक रह गया है सड़क व राष्ट्रीय राजमार्ग। सूत्रों की मानें तो गडकरी के अपने नैतिक साहस के अलावा उन्हें नागपुर से मिल रहा समर्थन भी अहम था। पर जैसे-जैसे नागपुर भी मोदी की विराट काया के समक्ष नतमस्तक होता चला गया भगवा सियासत में गडकरी की पूछ कम होती चली गई। लोग भूले नहीं होंगे जब 2019 में उन्होंने खुल कर कह दिया था-’जो आदमी यह समझता है कि वही सब कुछ जानता है, वह गलती पर है, लोगों को ‘आर्टिफिशियल मार्केटिंग’ से बचना चाहिए।’ शायद गडकरी को भी इस बात का भली-भांति इल्म रहा होगा कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनके साथ क्यों सौतेला सलूक कर रहा है, इसीलिए जब पूरी भाजपा व संघ नेहरू को गरियाने में लगे थे, वे नेहरू की तारीफ में कसीदे पढ़ देते हैं। अभी पिछले महीने जुलाई में नागपुर के एक कार्यक्रम में गडकरी ने खुल कर मन के उद्गार व्यक्त कर डाले और कहा-’देश की राजनीति इस कदर खराब हो गई है कि कभी-कभी उनका मन करता है कि वे राजनीति से संन्यास ले लें।’ उन्होंने आगे कहा-’आज की राजनीति पूरी तरह से सत्ता में बने रहने के लिए हो रही है।’ सूत्रों की मानें तो जब इस दफे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फोन कर गडकरी को बताया कि उन्हें संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से इस बार ड्रॉप किया जा रहा है तो गडकरी ने बेझिझक नड्डा को फोन पर खूब खरी-खोटी सुना दी। कहते हैं पार्टी में गडकरी से सहानुभूति रखने वाले काफी लोग हैं, गडकरी वक्त आने पर इसका खुलासा भी कर सकते हैं।

 
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