’मेरे मन के कोने के ठहरे अंधेरों में जुगनुओं सा चमकता तू
तेरे हाथों में खंजर की है जुस्तजू और तिल-तिल मरता मैं’
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्या इस बार के चुनावी जंग में अपनी विरक्त भावनाओं का आस्वादन कर रहे हैं? योगी को उनके गढ़ में ही चाकचौबंद घेरने की बिसात बिछाई जा चुकी है। एक तो भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने योगी के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दलित वोटों में सेंधमारी कर दी है। वहीं निषादों को एक बड़े नेता संजय निषाद से भी योगी की कुट्टी चल रही है, क्योंकि जिस न्यूज चैनल ने निषाद का स्टिंग ऑपरेशन दिखाया था, उस चैनल को योगी का अत्यंत करीबी माना जाता है। अब मिसाल देखिए इस चैनल समूह के नवअवतरित हिंदी न्यूज चैनल के चुनावी रथ को चैनल हेड के द्वारा झंडी दिखायी जानी थी, पर यह काम अंततः योगी के करकमलों से संपन्न हुआ। निषाद तोहमत लगा रहे हैं कि ’तेरे रहते लुटा है चमन बागवां, कैसे मान लूं कि तेरा इशारा न था।’ सो, गोरखपुर में निषाद वोट भी पलट गए तो योगी की राहे-मंजिल दुर्गम हो सकती है। क्योंकि गोरखपुर में किसी उम्मीदवार की हार-जीत तय करने में निषाद वोटर निर्णायक होते हैं। यह भी कहा जाता है कि संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल अभी पिछले दिनों भाजपा के एक बड़े नेता से मिले थे और उनसे जो कुछ करने को कहा गया है योगी इसे अपनी पीठ में खंजर भी मान सकते हैं। इस दफे गोरखपुर से योगी को चुनावी मैदान में उतारने के चक्कर में वहां के चार बार के भाजपा विधायक रहे राधा मोहन अग्रवाल का टिकट कट गया है, इससे अग्रवाल जी की नाराज़गी भी स्वाभाविक है। सनद रहे कि ये वही राधा मोहन अग्रवाल हैं जिन्होंने 2002 के यूपी विधानसभा चुनाव में योगी के कहने पर गोरखपुर से हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ला को हराया था। आज राधा मोहन अग्रवाल भी योगी के खिलाफ हो गए हैं, योगी और शिव प्रताप शुक्ला के बीच 36 का आंकड़ा जगजाहिर है, पर अगर उन्हीं शुक्ला जी को जब इस बार गोरखपुर चुनाव का इंचार्ज बना दिया गया हो तो सियासी स्वांग की नई अदाएं बरअक्स गोरखपुर की सियासी फिज़ाओं में तो उतर ही आई हैं।