नोटबंदी ने कई देशों को दर्द भी दिया है |
November 20 2016 |
नोटबंदी से उपजे खटराग में भगवा सियासत बेसुर-बेताल हुई जा रही है, संसद नए रण की जमीन तैयार कर रही है और विपक्षी पलटवार के लिए मुस्तैद लड़ाकों के मानिंद कमर कस चुके हैं। वाम व कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले अर्थशास्त्रियों को आशंका है कि मोदी का यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है। क्योंकि सोवियत संघ, घाना, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया जैसे कई देशों में नोटबंदी के फैसलों से पहले ही बड़े भूचाल आ चुके हैं। घाना जैसे गरीब अफ्रीकी देश में वहां फैले व्यापक भ्रष्ट्राचार और टैक्स चोरी को रोकने के लिए 1982 में वहां की सरकार ने बड़े नोटों (सेडी) के चलन पर पाबंदी लगा दी, तो घाना के मुट्ठी भर अमीरों ने रातों रात अपने काले धन को विदेशी मुद्राओं में कन्वर्ट करा लिया। वहीं सुदूर इलाकों में रहने वाली गरीब जनता मीलों का सफ़र तय करके बैंकों तक पहुंची तो लाइनों में खड़े होकर भी उनका श्रम बेकार साबित होता रहा। कई तो रास्तों में ही लुट गए। डेड लाइन खत्म होने के बाद वहां बंडलों के बंडल बेकार नोट नज़र आए। वहां की पूरी इकॉनमी तहस-नहस हो गई। ऐसा ही कुछ हाल नाइजीरिया व जायरे जैसे देशों का भी हुआ। उत्तरी कोरिया में भी वहां के तानाशाह शासक किम जांग-II ने काले धन पर अंकुश लगाने के उद्धेश्य से वहां बड़े नोटों पर पाबंदी लगा दी। इसका असर वहां की खेती किसानी पर देखने को मिला, देश भुखमरी का शिकार हो गया। तानाशाह किम को अपने देश की जनता से माफी मांगनी पड़ी। किम ने नोट बंदी का ठीकरा अपने वित्त मंत्री पर फोड़ दिया और उन्हें सजा-ए-मौत की सजा दे दी। 1991 में सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोव ने देश में फैले काले धन पर लगाम लगाने के लिए बड़े रूबल पर एकाएक पाबंदी लगा दी। सनद रहे कि उस वक्त सोवियत संघ में एक तिहाई प्रचलन इन्हीं बड़े नोटों का था। गोर्वाचोव के इस फैसले से वहां मुद्रास्फीति की दर इस कदर बढ़ी की वहां कि अर्थव्यवस्था ढह गई और भयंकर राजनैतिक अस्थिरता और उथल-पुथल के बाद सोवियत संघ भी कई भागों में टूट गया। भगवान करे कि सियासी रंगों में रंगे इन रंगे सियारों (अर्थशास्त्रियों) की हकीकत परत दर परत खुल जाए, चूंकि-एक बिचारे मोदी के पीछे यूं भी पड़े हैं, सैंकड़ों रोज़मर्रा के मसले, सिर्फ एक नोट बंदी ही तो नहीं, तेरे मेरे दरम्यान के फासले।’ |
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November 23rd, 2016
In reality no one is happy. Sad days for youth,shopkeepers and un employed. This will throw the country open for JACKALS. Jackals of various natures. I have seen a website asking for money in name of demonitisation. TO CLOSE demonitisation website like IMPACTGURU asking money.? The ultimate victim is poor. Ration card holders and ladies who were educated less. A big problem. BURE DIN MODI KE.