जयशंकर का आना

February 04 2015


स्वयं प्रधानमंत्री नहीं चाहते थे कि विदेश सचिव सुजाता सिंह की इतनी असहज विदाई हो, सो उन्होंने अपनी ओर से यह प्रस्ताव सुजाता के समक्ष रखा कि अगर वह चाहें तो सरकार उन्हें किसी अहम देश में भारतीय राजदूत की जिम्मेदारी दे सकती है या फिर किसी राज्य का गवर्नर बना सकती है। पर कहते हैं कि सुजाता का मन तब तक इतना खट्टा हो चुका था कि उन्होंने अपनी रिटायरमेंट की इच्छा जाहिर की, जबकि उनका सेवा काल अगस्त 2015 तक का था, दूसरी ओर एस. जयशंकर 31 जनवरी 2015 को ही रिटायर हो रहे थे, सो सरकार के समक्ष बाध्यता थी कि इससे पूर्व ही जयशंकर को कोई नई जिम्मेदारी सौंपी जाए, जिससे कि उन्हें दो वर्ष का सेवा विस्तार मिल सके। 1978 बैच के आईएसएफ जयशंकर को मोदी विदेश नीति सलाहकार के पद पर नियुक्त नहीं करना चाहते थे, क्योंकि ऐसे में मोदी के बेहद भरोसेमंद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल के प्रभाव क्षेत्र का अतिक्रमण हो सकता था। सो, मोदी के समक्ष सुजाता को बाहर का रास्ता दिखाने के सिवाए और कोई विकल्प नहीं बचता था।

 
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