राहुल घर लौट आओ!

March 08 2015


पर राहुल भी जाते-जाते अपनी मांगों की लंबी फेहरिस्त अपनी मां को सौंप कर गए हैं, शायद यही वजह है कि कांग्रेस के हालिया कुछ बड़े फैसलों में राहुल की राामंदी की झलक दिखाई दे रही है। जैसे गुजरात के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर भरत सिंह सोलंकी की नियुक्ति में सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल की रजामंदी शामिल नहीं है, हालांकि पिछले दो दशक में गुजरात कांग्रेस में एक पत्ता भी अहमद पटेल के चाहे बगैर नहीं हिलता था, सियासी मौसम बदलने के साथ निष्ठाएं भी बदलती हैं और नेपथ्य के मायने भी। यही सोलंकी हैं जिन्हें पहले पहल पटेल के कहने पर गुजरात प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया था, पर चर्चित सीडी कांड में सोलंकी का नाम आने के बाद अहमद पटेल ने उनसे किनारा कर लिया। शायद यही वजह है कि इस बार राहुल दरबार में सोलंकी के पैरवीकार के रूप में मधुसूदन मिस्त्री का नाम सामने आया था, वैसे ही दिल्ली में जिनके नायकत्व में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया, उस सेनापति को दिल्ली की बागडोर सौंपने के पक्ष में सोनिया नहीं थीं, पर राहुल की जिद के समक्ष उन्हें झुकना पड़ा और अजय माकन को दिल्ली की कमान सौंप दी गई, वैसे भी अशोक चव्हाण भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे, पर उन्हें महाराष्ट्र का जिम्मा दिया गया है। संजय निरूपम जब तक सामना और शिवसेना में थे सोनिया पर उन्होंने खुलकर ‘हल्ला बोल’ की अलख जगाई थी, पर सिर्फ राहुल के चाहने पर उन्हें मुंबई कांग्रेस की बागडोर सौंप दी गई। वक्त आ गया है कि अब कांग्रेस अपना वह इश्तहार सार्वजनिक करें, जिसमें राहुल की एक श्वेत-श्याम तस्वीर लगी हो-‘बेटा घर लौट आओ, कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा, मां ने भी तुम्हारी हर मांग मान ली है।’

 
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