संगठन व सरकार में फेरबदल की आहटें

January 25 2016


अमित शाह को तीन वर्षों के लिए दोबारा अध्यक्ष बनवाना नरेंद्र मोदी के लिए खासा चुनौतियों भरा उपक्रम रहा, एक आत्ममुग्ध सेनापति के लिए किसी के दर शीश नवाना कतई आसान नहीं होता, पर अपने गुजराती सखा के लिए मोदी ने यह करने से भी संकोच नहीं किया। संघ के शीर्ष नेताओं से इस बाबत उन्होंने कई दौर की बात की और बाकी का मोर्चा नितिन गडकरी ने संभाला, जो हालिया दिनों में मोदी के खास वफादार बनकर उभरे हैं। कहते हैं अपने परिवार की दबाव की वजह से गडकरी ने संगठन में जाने के बजाए सरकार में बने रहना ही ज्यादा मुफीद समझा, यही बात शाह के हक में चली गई। क्योंकि पार्टी के अगले अध्यक्ष के रूप में नितिन गडकरी संघ के र्निविवाद पसंद बनकर उभरे थे। एक बार गडकरी को साधने के बाद मोदी के लिए संघ व पार्टी के अन्य नेताओं को मनाना किंचित मुश्किल नहीं था। इस दफे अमित शाह अपनी नई टीम को चुनने में काफी सतर्कता बरत सकते हैं और जिताऊ चेहरों पर दांव लगा सकते हैं। चुनांचे इस दफे की ’टीम-शाह’ में आपको चंद ऐसे चेहरे देखने को मिल जाएंगे, जिनकी एक विद्रोही छवि है। पर अपने-अपने गृह राज्यों में इनका असर है। सो, इस दफे थोकभाव में टीम शाह में ऐसे नेता षामिल हो सकते हैं, जिन पर उनके पालतू होने का ’ठप्पा’ नहीं लगा है। सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार से कोई तीन-चार मंत्रियों को भी संगठन की सेवा में लगाया जा सकता है। चूंकि 23 फरवरी से संसद का बजट सत्र आहूत है, सो इसके पहले मोदी अपनी कैबिनेट में भी एक व्यापक फेरबदल कर सकते हैं। 75 पार मंत्रियों की कैबिनेट से छुट्टी हो सकती है, सात राज्यों के आसन्न चुनावों को देखते हुए उन राज्यों को मंत्रिमंडल में नए सिरे से प्रतिनिधित्व देने की कवायद हो सकती है। कई हैवीवेट मंत्रियों के विभाग बदले जा सकते हैं, जिन मंत्रियों के पास एक से ज्यादा विभाग है उनके बोझ को हल्का किया जा सकता है। पर यह फेरबदल किस तारीख को होगी इस बात का इल्म प्रधानमंत्री के सिवा षायद ही किसी और को हो।

 
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