Posted on 06 August 2022 by admin
पिछले दिनों जब पूर्व एचआरडी मिनिस्टर निशंक पोखरियाल सदन से निकल कर बाहर खड़े होकर अपनी गाड़ी का इंतजार कर रहे थे तब वे निपट अकेले एक ओर खड़े थे, मंत्री रहते जब वे बाहर निकलते तो पत्रकारों व छायाकारों के हुजूम में घिरे रहते थे, एक सीनियर फोटो जर्नलिस्ट उनके पास गया और हौले से पूछा-’सर वे दिन याद हैं आपको जब आपके आसपास इतनी धक्का-मुक्की होती थी कि चलने का रास्ता भी नहीं मिलता था?’ निशंक हौले से मुस्कुराए और बोले-’तब की बात और थी, तब मेरे पास जिम्मेदारी थी।’ वहीं पास रवि शंकर प्रसाद भी खड़े थे, यूं ही बेहद तन्हा, आसपास उनके भी कोई नहीं था, उस फोटो जर्नलिस्ट ने उनसे भी ‘हलो’ कहा, पर सवाल नहीं पूछा, उन्हें मालूम था कि दर्द तो इन सबका एक ही होगा।
Posted on 12 July 2022 by admin
एक) देवेंद्र फड़णवीस के महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बनने पर पूरे महाराष्ट्र में बधाई वाले पोस्टर लगाए गए हैं, इस पोस्टर पर भाजपा के तमाम बड़े नेता चस्पां है, सिवा नंबर दो के, फड़णवीस को शिकायत है कि इन्होंने ही उन्हें सीएम नहीं बनने दिया।
दो) आम आदमी पार्टी में शादियों का सीज़न चल रहा है, भगवंत मान की अभी ताजा-ताजा शादी के बाद एक बड़े नेता की बेटी की सगाई की चर्चा है, वह भी पार्टी के ही एक सांसद के साथ ।
Posted on 12 July 2022 by admin
ज्वॉइंट ऑपोजिशन पार्टी की पहली मीटिंग में झारखंड मुक्ति मोर्चा का एक अहम प्रतिनिधि भी इसमें शामिल था, पर विपक्ष के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करने के लिए जैसे ही दूसरी मीटिंग आहूत हुई और उसमें बतौर उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का नाम फाइनल हुआ, झामुमो उस मीटिंग से नदारद था। झामुमो को पता चल चुका था कि एनडीए द्रौपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार घोषित करने वाला है, और द्रौपदी मुर्मू का विरोध हेमंत सोरेन, उनके परिवार या पार्टी के लिए आसान नहीं रहने वाला है। क्योंकि मुर्मू भी उसी संथाल आदिवासी परिवार से आती हैं जो जाति हेमंत सोरेन परिवार की है। हेमंत के पिता शिबू सोरेन संथालों के सबसे बड़े नेताओं में शुमार होते हैं, सो द्रौपदी मुर्मू की खिलाफत हेमंत सोरेन के लिए अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा था।
Posted on 19 June 2022 by admin
लगातार 27 महीने जेल के सलाखों के पीछे गुजारने वाले आजम खां को यूं अचानक कैसे 89 में से 88 मामलों में फौरी राहत मिल गई? ये वही आजम खान हैं जो सदैव से भाजपा के निशाने पर रहे हैं। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो आजम को राहत दिलवाने में बरेली के एक शिक्षा व्यवसायी की प्रमुख भूमिका रही, ये जनाब पूर्व में बरेली के मेयर भी रह चुके हैं। इस व्यवसायी के घर एक रोज चुपचाप आजम खान के पुत्र और उनकी पत्नी आ धमकती हैं, जहां इनकी मुलाकात यूपी भाजपा के एक सबसे सशक्त महासचिव से होती है। वहीं डील पक्की होती है कि ’भाजपा जब चाहे आजम की मदद अखिलेश को कमजोर करने में ले सकती है, जरूरत पड़ी तो आजम को मुसलमानों की एक नई राजनैतिक पार्टी भी बनानी पड़ सकती है।’ इसके बाद इस महासचिव ने वहीं से फोन पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात की, योगी ने भी साफ कर दिया कि ’अगर आजम की कोई मदद हो जाती है तो उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं।’ पर आपत्ति के स्वर सुनाई दिए योगी के प्रखर विरोधी और उनके ही कैबिनेट मंत्री केशव प्रसाद मौर्य की ओर से, जिन्होंने आनन-फानन में बयान देकर कहा कि ’वे आजम खान की रिहाई का विरोध करेंगे और वह इसे जनता के बीच लेकर जाएंगे।’ कहते हैं इसके बाद मौर्य को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से कड़ी फटकार लगाई गई और उनसे कहा गया कि ’वे हर वक्त योगी को डैमेज करने की कोशिश न करें, योगी से अब उनका कोई मुकाबला नहीं है, वे कहीं बहुत आगे निकल चुके हैं।’
Posted on 19 June 2022 by admin
भाजपा में इन दिनों असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा की तूती बोल रही है। पिछले दिनों मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा पीएम मोदी से मिलने की आस लिए दिल्ली पधारे पर किसी कारणवश यह मुलाकात नहीं हो पाई। फिर उन्होंने सरकार के नंबर दो अमित षाह से मिलने की गुहार लगाई, पर तब शाह भी व्यस्त थे, बस फोन पर बात हो पाई। उसी दौरान सिक्किम के सीएम प्रेम सिंह तमांग भी पीएम से मिलने की आस लिए दिल्ली आ गए, पर उनकी मुलाकात भी न पीएम से हो पाई और न ही गृह मंत्री से। इसके बाद इन्होंने भी अपना दर्द फोन पर गृह मंत्री के समक्ष बयां किया। इसके बाद शाह ने नार्थ ईस्ट के तमाम मुख्यमंत्रियों के लिए एक व्यवस्था बहाल की है कि हेमंत बिस्वा सरमा हर दो हफ्ते में नार्थ ईस्ट के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करेंगे और उनकी मांगों और भावनाओं से दिल्ली को अवगत करा देंगे, तब से बिस्वा सरमा को नार्थ ईस्ट का ‘सुपर सीएम’ कहा जाने लगा है।
Posted on 17 May 2022 by admin
‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम‘ में पिछले दिनों बतौर मेंबर एक अहम नियुक्ति हुई है। ये अफसर हैं संजय अग्रवाल, ये पूर्व में मुंद्रा पोर्ट के कमिश्नर भी रह चुके हैं, गुलजार के शब्दों में बयां करे तो ’मैंने मुन्द्रों’ की तरह कानों में तेरी आवाज़ पहन रखी है।’ अब आपको बताना पड़ेगा कि यह आवाज़ किसकी है, वे दुनिया के पांच सबसे अमीर शख्सों में शुमार हैं और जिनकी एक आहट पर सत्ता के हर द्वार खुद ब खुद खुल जाते हैं।
Posted on 03 October 2021 by admin
क्या नीतीश कुमार अवसरवादी राजनीति के सबसे बड़े चैंपियन हैं? तभी तो उनके हनुमान लल्लन सिंह उन्हें जेपी के बराबर का नेता बताते हैं, अपने नेता की आत्ममुग्धता को धार देने के लिए आरसीपी सिंह नीतीश को जेपी से भी बड़ा नेता करार देते हैं, समाजवादी आंदोलन की कोख से पैदा हुए केसी त्यागी भी उन्हें यानी नीतीश को पीएम मैटेरियल बता रहे हैं, तो ऐसे में नीतीश का विपक्षी एका का चेहरा बनने की कदमताल करना लाजिमी ही लगता है। खास कर वैसे वक्त में जब सीएम नीतीश के गृह राज्य के एक विश्वविद्यालय ने अपने पाठ्यक्रम से जेपी और लोहिया के पाठ को डिलीट कर उनकी जगह पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चैप्टर को चस्पां कर दिया है। नीतीश की पार्टी का बिहार में अपना कोई बड़ा जनाधार नहीं है, सो वक्त-बेवक्त वह लालू या भाजपा के कंधे पर सवार होकर चुनावी वैतरणी पार करते आए हैं। इस बार वे अमित शाह से मिलने गए तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को साथ ले गए, जबकि बिहार की सरकार में उनकी पार्टनरशिप भाजपा के साथ हैं, पर भाजपा ने इस दफे उन्हें ’कट टू साइज’ कर दिया है, इस बात से वे बेहद खफा हैं, सो वे लालू और तेजस्वी संग दोस्ती की नई पींगे बढ़ा रहे हैं। 25 सितंबर को हरियाणा के जींद में ताऊ देवीलाल की जयंती के मौके पर एक बड़ी रैली आहूत है, इस रैली में एक से बढ़ कर एक विपक्षी सूरमा शिरकत कर रहे हैं। कई बड़े किसान नेता जुट रहे हैं। लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, प्रकाश सिंह बादल जैसे नेताओं की उपस्थिति के बीच उस रैली में नीतीश कुमार को भी आमंत्रित किया गया है जो कहीं न कहीं इस बात का भी ऐलान है कि वे अब विपक्ष के भी एक सर्वमान्य चेहरा बन चुके हैं, भले ही अंदरखाने से उन्होंने अपने हाथ भाजपा से मिला रखे हों। राहुल गांधी से भी नीतीश के बेहद अच्छे ताल्लुकात हैं, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से भी उन्होंने बकायदा अपने तार जोड़ रखे हैं। कांग्रेस नेतृत्व इस बारे में कृतसंकल्प जान पड़ता है कि अगर 2024 में भाजपा को हटाने और हराने के लिए पीएम की दावेदारी से राहुल को अपने कदम पीछे भी खींचने पड़े तो, कांग्रेस इसके लिए तैयार है और वह ममता या नीतीश जैसे चेहरों पर भी दांव लगाने से नहीं हिचकेगी, चतुर-सुजान नीतीश इस बात को समझ चुके हैं सो वे धीरे-धीरे भाजपा से अपना पिंड छुड़ाने में लगे हैं।
Posted on 03 October 2021 by admin
वैकल्पिक राजनीति की जमीन तलाशने की जद्दोजहद में जुटी आम आदमी पार्टी ने आखिरकार यूपी में सपा से किनारा क्यों कर लिया? आप और सपा के चुनावी गठजोड़ की सुगबुगाहट काफी पहले से सुनी जा रही थी, इसके सूत्रधार के तौर पर आप के यूपी प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह एक बदले सियासी पटल पर अवतरित हुए थे। सूत्र बताते हैं कि सपा सुप्रीमो से संजय सिंह से सीटों के तालमेल को लेकर पूर्व में कई-कई मुलाकातें हो चुकी थी, सुना यह भी जा रहा था कि जितनी सीटें अखिलेश आप के लिए छोड़ना चाहते थे उससे आप के यूपी संगठन में विद्रोह के स्वर सुनाई देने लगे थे, सियासी नेपथ्य में पल-पल शक्ल बदलती खबरों ने उस वक्त हैरान कर दिया जब यह सुना जाने लगा कि आप के पूर्वांचल प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और यूपी के सहप्रभारी एक प्रमुख ब्राह्मण नेता अनूप पांडेय पर सपा डोरे डाल रही है और उन्हें साइकिल के चुनाव चिन्ह पर उनका मनमाफिक सीट ऑफर कर रही है। इन खबरों का भी आप ने संज्ञान लिया और दोनों दलों के बीच नई-नई दोस्ती में दरारें दिखने लगी, अखिलेश के जन्मदिन के एक दिन बाद जब संजय सिंह उन्हें बधाई देने पहुंचे तो सियासी आसमां में दोस्ती के इंद्रधनुष का रंग बदलते दिखा। आप का स्टैंड था कि सपा उन्हें कमतर आंक रही है, सपा को लगता है कि आप यूपी में अपने प्रभाव से कहीं ज्यादा सीटें मांग रही थी। आप को यह भी लग रहा था कि यूपी में सपा के समक्ष घुटने टेकने से इसका प्रभाव उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों पर पड़ सकता था, जिन राज्यों में आप मजबूती से उभर रही है। जब से आप ने यह तय किया है कि पार्टी प्रदेश की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, इससे भाजपा की भी बाछें खिल गयी हैं। भाजपा को लगता है कि यूपी में सरकार से नाखुश वोटरों का रूझान सपा के बजाए आप की ओर हो सकता है। युवा और फ्लोटिंग वोटर्स भी आप की ओर मुखातिब हो सकते हैं, इससे कई शहरी और अर्द्ध शहरी सीटों पर सपा की संभावनाओं को ग्रहण लग सकता है। आप यूपी चुनाव में भी बिजली, शिक्षा और चिकित्सा को अपने प्रमुख चुनावी मुद्दे के तौर पर पेश कर सकती है, लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं से जुड़े ये मुद्दे दिल्ली में पहले ही कमाल कर चुके हैं, अगर यूपी वालों को ’केजरीवाल मॉडल’ का यह आकर्षण किंचित भी बांध पाया तो यूपी में आप की पहली पारी का अच्छा आगाज़ हो सकता है। वैसे भी हालिया पंचायत चुनाव में आप ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन कर अपने संगठन में उम्मीदों की जोत तो जगा ही दी है।
Posted on 03 October 2021 by admin
दिग्विजय सिंह की रगों में जैसे विद्रोह और आंदोलन उबाल मारता है, राहुल गांधी को षायद इस बात का बखूबी इल्म है सो, उन्होंने दिग्विजय को कांग्रेस की नवगठित आंदोलन कमेटी का चैयरमेन बनाया है। दिग्विजय वैसे भी पार्टी में अपने लिए किसी नई भूमिका की तलाश में हैं, सुगबुगाहट है कि उन्हें ‘एबीसीडी’ यानी आदरणीय भक्त चरण दास की जगह बिहार का नया प्रभारी बनाया जा सकता है। इस बात के संकेत दिग्विजय ने स्वयं अपनी हालिया बिहार यात्रा के दौरान दे दिए। इस बिहार यात्रा में दिग्विजय के रात्रि प्रवास का इंतजाम पार्टी ने पटना के एक होटल में किया था। बातों ही बातों में दिग्विजय ने अपने खास वफादार चंदन बागची से कह दिया कि अब उनका पटना आना-जाना लगा रहेगा, सो वे होटल के बजाए पटना में सदाकत आश्रम में ही रुकना ज्यादा पसंद करेंगे। सनद रहे कि पटना स्थित कांग्रेस के सदाकत आश्रम के ऊपरी मंजिल पर दो कमरे बने हैं जिनमें मेहमानों को ठहराया जाता है। खास कर पार्टी प्रभारी इन्हीं कमरों में ठहरना पसंद करते हैं ताकि पार्टी कार्यकत्र्ताओं और नेताओं से आसानी से मिलजुल सकें। कांग्रेस के मौजूदा प्रभारी एबीसीडी भले ही इस बात के अपवाद हों क्योंकि वे सदाकत आश्रम के बजाए पटना के एक खास पंचतारा होटल में रूकना ज्यादा पसंद करते हैं। वैसे भी दिग्विजय सिंह के लालू यादव और नीतीश कुमार से भी बेहद पुराने ताल्लुकात हैं, कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व को भरोसा है कि दिग्विजय के दोनों नेताओं से पुराने रिष्ते बिहार में कांगे्रस को फिर से पांव जमाने में मददगार साबित होंगे। पर लोगों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अब तक अपने ‘बड़बोलों’ से दिग्विजय कांग्रेस पार्टी का अतीत में कितना भट्ठा बिठा चुके हैं।
Posted on 03 October 2021 by admin
क्या बिहार के कांग्रेस प्रभारी आदरणीय भक्त चरण दास (एबीसीडी) की छुट्टी होने वाली है? आखिरकार क्यों राहुल गांधी उनसे इस कदर नाराज़ हैं कि पिछले कुछ समय से दास राहुल से मिलने का समय मांग रहे हैं पर हर बार आरजी ऑफिस से उन्हें ’ना’ सुनने को मिल रही है। दरअसल, राहुल चाहते हैं कि बिहार कांग्रेस में नई जान फूंकी जाए, पर कांग्रेस की मुश्किल यह है कि न ही प्रदेश में उसका कोई मजबूत संगठन बचा है, न ही कोई मजबूत जनाधार और न ही कोई बड़ा चेहरा। राहुल बिहार कांग्रेस को एक नया चेहरा-मोहरा देना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें वहां एक ’प्रो-एक्टिव’ प्रदेश अध्यक्ष की जरूरत है, राहुल अपने बिहार प्रभारी अब तलक कोई तीन दफे नाम मांग चुके हैं और भक्त चरण दास ने तीनों बार घुमा फिरा कर बिहार के एक दलित नेता राजेश राम का नाम ही आगे किया है। हालांकि बिहार में दलित वोटरों की एक अच्छी खासी तादाद है, कोई 16 फीसदी, पर पिछले कुछ चुनावों का इतिहास देखें तो अब दलित वोटर कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में शुमार नहीं रह गए हैं, सो राहुल चाहते हैं कि किसी गैर दलित नेता के हाथों बिहार की बागडोर सौंपी जाए ताकि कांग्रेस के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोले जा सके।