‘आप’ का संताप

January 13 2014


एक अलग ख्याल, अलग अस्मिता, अलग राजनैतिक चिंतन, अलग रास्ता लेकिन सत्ता की गंगोत्री सामने दिख रही हो तो एक स्वच्छ धारा को भी मैली होने में वक्त नहीं लगता। कहां वक्त लगा आम आदमी पार्टी को शोएब इकबाल जैसे अमर्यादित चरित्र वालों का समर्थन हासिल करने में? कहा तो यह भी जा रहा है कि हालिया दिनों में आम आदमी पार्टी में कई दबंग नेताओं के रिश्तेदार, माफियाओं के भाई-बंधु, और कई अवसरवादी राजनीतिज्ञ थोकभाव में शामिल हुए हैं। आम चुनावों में वक्त नहीं रह गया है, चुनांचे आम आदमी वालों के पास भी वक्त कहां इतनी छान-बीन का कि पार्टी में शामिल हो रहे या उन्हें समर्थन दे रहे लोगों का ‘टै्रक रिकार्ड’ क्या है? यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों में दिल्ली में कई आम आदमी प्रतिनिधियों के खिलाफ परचे बंटने शुरू हो गए हैं, कुछ पर तो संगीन आरोप लग रहे हैं, सियासत का तो यही दस्तूर है मिस्टर क्लीन, केजरीवाल जी जरा संभल कर!

 
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