राजस्थान के भगवा सियासी फिज़ाओं में असंतोश के बादलों का उमड़ना-घुमड़ना जारी है, अभी पिछले दिनों की बात है जब राजस्थान कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य गण जयपुर से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे तो वे एक सुखद आश्चर्य में डूब गए, जब उन्हें वहां वसुंधरा राजे सिंधिया के दीदार हो गए, वसंधुरा भी उसी फ्लाइट से दिल्ली जाने वाली थीं। किसी कारण वश वह फ्लाइट डेढ़ घंटे लेट हो गई, फिर क्या था कांग्रेस नेता गणों ने वसुंधरा के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवानी शुरू कर दी, वह भी बारी बारी से, वसुंधरा ने भी सहर्ष भाव से अपने विरोधी पार्टी के नेताओं को यह मौका दिया। कई कांग्रेसी नेताओं ने उसी वक्त वसुंधरा के साथ अपनी वह तस्वीर ट्वीट भी कर दी। इन कांग्रेसी नेताओं को बातों ही बातों में वसुंधरा ने बताया कि राजस्थान में इस दफे का चुनाव भाजपा पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ने जा रही है, इस चुनाव में उन्हें यानी वसुंधरा को पार्टी ने कोई खास रोल नहीं बख्शा है। कांग्रेसी नेताओं के हवाले से यह भी बात निकली है कि वसुंधरा ने स्पष्ट कर दिया है कि ’यदि उनकी पार्टी भाजपा उनके लिए कोई रोल सुनिश्चित करती है तो इस चुनाव में वह न्यूट्रल रहेंगी, उन्हें कोई रोल अगर नहीं दिया गया तो फिर वह अपनी मर्जी से अपनी भूमिका का चुनाव करेंगी।’ वहीं वसुंधरा वफादार कैलाश मेघवाल को भाजपा ने भ्रष्टाचार के आरोपों पर पार्टी से निलंबित कर दिया है, मेघवाल ने बतौर निर्दलीय भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, क्या राजस्थान में बागी आहटों की मुनादी हो चुकी है?
इस बार धूम धड़ाके के साथ कांग्रेस की सीडब्ल्यूसी की बैठक हैदराबाद में आहूत हो रही है, जिसमें कांग्रेस के कोई 90 महत्वपूर्ण नेता हिस्सा ले रहे हैं, जिसमें कांग्रेस शासित प्रदेशों के चारों मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। इस बैठक में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण व पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चा हो रही है। विपक्षी महागठबंधन इंडिया बनने के बाद कांग्रेस की यह पहली बैठक है। पर इस बैठक से कांग्रेस के 6 प्रमुख नेताओं का गैर हाजिरी रहना, नेपथ्य के सन्नाटों को झंकृत करता है। पवन बंसल या एके एंटोनी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने भले ही अपने स्वास्थ्यगत कारणों का हवाला देते हुए बैठक में आने में आने असमर्थता जता दी हो, पर सब जानते हैं कि एंटोनी अपने पुत्र अनिल एंटोनी के भाजपा ज्वॉइन करने से असहज हैं, जूनियर एंटोनी इन दिनों बड़ी तन्मयता से कांग्रेस विरोध की अलख जगा रहे हैं, वहीं पवन बंसल व कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के दरम्यान तलवारें तनी है और बंसल की कुर्सी जाने का खतरा लगातार उनके सिर मंडरा रहा है।
अभी पिछले दिनों भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन का एक सफल आयोजन हुआ, पर एक देश के प्रधानमंत्री ऐसे भी थे जिन्होंने भारत से अपनी नाराज़गी दिखाने में संकोच नहीं किया, बदले में भारत के प्रधानमंत्री की भंगिमाएं भी ’जैसे को तैसा’ का आभास दे रही थीं। भारत की जस्टिन ट्रूडो से नाराज़गी का अंदाजा इस बात से भी हो जाता है कि पीएम मोदी ने इस भव्य आयोजन में शिरकत करने वाले हर नेता का अपने साथ के स्वागत वीडियो को पोस्ट किया, पर इससे जस्टिन ट्रूडो महरूम रह गए। ट्रूडो के स्वागत का कोई नोट भी पीएम मोदी की तरफ से पोस्ट नहीं हुआ। दरअसल, कनाडा में चल रहे खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियों पर भारत ने सदैव गंभीर एतराज जताया है। इसकी प्रतिध्वनि कनाडा की ओर से भी सुनने को मिली जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा जी-20 के नेताओं के सम्मान में आयोजित रात्रि भोज में ट्रूडो आए ही नहीं। जब कनाडा के पीएम के विमान में कुछ तकनीकी खरीबी आ गई और उन्हें 30-32 घंटों तक मजबूरन भारत में ही रूकना पड़ा तो भारत ने अपनी ओर से उन्हें एक विशेष विमान की पेशकश भी की थी, पर ट्रूडो ने भारत के इस पेशकश को ठुकरा दिया।
महाराष्ट्र में भी निरंतर जातीय जनगणना की मांग उठ रही है, वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि यह राज्य सरकार की मर्जी है कि वह जातीय जनगणना कराना चाहती है कि नहीं। महाराष्ट्र में भी भाजपा नीत सरकार है। जबकि देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में भाजपा की डबल इंजन की सरकार है। वहां के सीएम योगी ने डंके की चोट पर कहा है कि वे किसी भी कीमत पर जाति आधारित जनगणना नहीं कराएंगे। जबकि केंद्र नीत मोदी सरकार के मन में कहीं न कहीं है कि ’यूपी में कम से कम कास्ट सेंसस होना ही चाहिए।’ योगी आदित्यनाथ इन दिनों राजपूतों के सबसे बड़े नेताओं में शुमार होते हैं, उन्होंने अपने शौर्य बल से इस रेस में राजनाथ सिंह को भी काफी पीछे धकेल दिया है, योगी अपने पूर्ववर्ती गुरू महंत अवैद्यनाथ की जगह नाथ संप्रदाय के सबसे बड़े महंत हैं और उन्हें संघ का पूरा समर्थन भी हासिल है।
लगता है विपक्षी खेमे ने भी बहुत सोच विचार कर सनातन की डिबेट को हवा दी है, शायद इसीलिए स्टालिन पुत्र उदयनिधि इस मुद्दे पर इतनी उछल कूद मचा रहे हैं, सो वे सुविचारित रूप से सनातन को कभी डेंगू, कभी मलेरिया या कभी कोरोना बुलाते हैं। सनानत धर्म का मुद्दा अब विपक्षी गठबंधन इंडिया के लिए भी एक एसिड टेस्ट हो गया है। दक्षिण से अलग उत्तर भारत में विपक्ष के लिए सनातन का अर्थ वर्णवाद से जुड़ा है। वैसे भी दक्षिण भारत में ब्राह्मणवाद के विरोध का फायदा हमेशा से विपक्षी दल उठाते रहे हैं, कारण ओबीसी व दलित जैसी जातियां हमेशा से ब्राह्मणों से त्रस्त रही है। ओबीसी व दलित जातियों को मद्देनज़र रखते ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपने नेताओं व वक्ताओं से कहा है कि ’वे बिलावजह सनातन डिबेट में न उलझें।’ वहीं जी-20 समिट में मेहमानों को जहां शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसा जाता है, तो वहीं राहुल गांधी का लालू यादव के साथ वह वीडियो वायरल हो जाता है जिसमें वे खास चंपारण मीट पकाते नज़र आते हैं। यह विपक्षी गठबंधन इंडिया की एक सुविचारित रणनीति हो सकती है। शायद यही वजह है कि एक ओर जहां भाजपा राम मंदिर की बात करती है तो सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और आरजेडी नेता व बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर रामचरित मानस के विरोध में अलख जगाते हैं, चंद्रशेखर तुर्रा उछालते हैं कि ’रामचरित मानस में तो पोटेशियम साइनाइट है।’ पिछले दो लोकसभा चुनावों यानी 2014 व 2019 में ओबीसी वोटरों ने भाजपा का साथ दिया था, इंडिया गठबंधन इसी गणित को पलटने में जुटा है।
’एक दिन तू भी इस दिल से निकाला जाएगा
आज तकिये के नीचे है चांद
सुबह होते ही इसे आसमां से पुकारा जाएगा’
2024 का आम चुनाव विपक्षी गठबंधन इंडिया और सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए के लिए नाक का सवाल बन चुका है, दोनों ही गठबंधनों की नज़र देश की लगभग 40 फीसदी ओबीसी जातियों को लुभाने पर है। विपक्षी गठबंधन इसके लिए लगातार जातीय जनगणना की मांग दुहरा रहा है, वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन ‘रोहिणी कमीशन’ की रिपोर्ट से माहौल बनाने की कोशिशों में जुटा है। केंद्र सरकार की लिस्ट में 3 हजार से ज्यादा ओबीसी जातियां शुमार हैं, जिन्हें ‘सब कैटेगिरी’ में बांटे जाने की मांग उठती रही है। इसी मांग को ध्यान में रख कर केंद्र सरकार ने कोई पांच वर्ष पहले 2 अक्टूबर 2017 को रोहिणी आयोग का गठन किया था, इस कमीशन को अब तक 14 बार एक्सटेंशन मिला है, तब कहीं जाकर कुछ दिन पहले इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सौंपी है, यह हजार पन्नों से ज्यादा की रिपोर्ट है। माना जाता है कि इसमें 2600 से ज्यादा ओबीसी जातियों की अपडेटेड लिस्ट है, जिन्हें चार सब कैटेगिरी में बांटने की बात हुई है, एक तो वैसी ओबीसी जातियां जिन्हें अब तलक आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला इन्हें 10 फीसदी, जिन्हें थोड़ा मिला उन्हें भी 10 फीसदी और जिन पिछड़ी जातियों ने आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ उठाया उन्हें 7 फीसदी आरक्षण देने की बात हुई है। सो, जातीय जनगणना की काट केंद्र सरकार को रोहिणी कमीशन के रिपोर्ट के रूप में मिल गई है। वैसे भी संपन्न ओबीसी जातियां मसलन यादव, कुर्मी, मौर्य, गुर्जर, लोध आदि को भाजपा ने पहले ही अपना वोट बैंक बना लिया है। अब कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर अति पिछड़ों और मजबूत पिछड़ों का अंतर दिखा कर इससे लाभ लेने की कवायद हो सकती है। ओबीसी वोट अब तलक भाजपा व क्षेत्रीय दलों के बीच बंटा हुआ है, 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 फीसदी ओबीसी वोट भाजपा को गया था, क्षेत्रीय दलों के खाते में 43 प्रतिशत वोट आए थे। वहीं 2019 के चुनाव में भाजपा ने पासा ही पलट दिया, ओबीसी के 44 फीसदी वोट भाजपा को मिले, वहीं मात्र 26.4 प्रतिशत वोट क्षेत्रीय दलों को। सनद रहे कि रोहिणी कमीशन ने अपनी यह रिपोर्ट केंद्रीय विश्वविद्यालयों व नामचीन शिक्षण संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम व केंद्रीय नौकरियों में ओबीसी कोटा के तहत स्थान पा गए एक लाख लोगों के आंकड़ों के आधार पर विभिन्न ओबीसी जातियों का विश्लेषण किया है, अब मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को संसद में चर्चा के लिए लाना चाहती है ताकि इसकी सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू किया जा सके।
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2024 के आसन्न आम चुनाव की आहटों के मद्देनज़र दिल्ली दरबार में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पूछ अचानक से बढ़ गई है। नहीं तो पिछले काफी समय से योगी पीएम से मिलने का वक्त मांग रहे थे, पर उन्हें पीएम की अतिव्यस्ताओं का हवाला दिया जाता रहा था। जी20 आयोजन शुरू होने से ऐन पहले योगी को दिल्ली दरबार से अचानक से ही बुलावा आ गया, तो वक्त की नज़ाकत को भांपते हुए चतुर सुजान योगी ने दिल्ली संदेशा भिजवाया कि ’उन्हें पीएम के समक्ष अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर को लेकर एक प्रेजेंटेशन भी देना है।’ दिल्ली से हामी मिलने के बाद योगी अपने साथ राज्य के नगर विकास व ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा को भी साथ लेकर दिल्ली पहुंचे जो एक समय पीएम के सबसे दुलारे अफसरों में शुमार होते थे, योगी दिल्ली आए, ये प्रेजेंटेशन भी 2 घंटों तक चला, पीएम ने भी ध्यानपूर्वक यह प्रेजेंटेशन देखा, फिर योगी के साथ उनकी वन-टू-वन बातचीत हुई। नहीं तो इससे पहले तक अमित शाह के दुलारे व राज्य के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को ही दिल्ली तलब कर उनसे रिपोर्ट तलब कर ली जाती थी। अब इस घोसी उप चुनाव को ही ले लें, दिल्ली के कहने पर भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह के लिए यहां 18 केंद्रीय मंत्रियों, दो उप मुख्यमंत्रियों और दर्जनों प्रमुख भगवा नेताओं की टीम लगाई गई थी, फिर भी दारा सिंह यहां से सपा के हाथों चुनाव हार गए, क्योंकि दारा सिंह को लेकर योगी अपना पुराना दर्द भूल नहीं पाए थे, क्योंकि जब दारा सपा में थे तो उन्होंने एक तरह से योगी के खिलाफ मोर्चा ही खोल रखा था। सबसे हैरत की बात तो यह कि घोसी से दारा सिंह को जिताने का जिम्मा भी दिल्ली ने अपने दुलारे एके शर्मा को ही सौंप रखा था।
आगामी 18 सितंबर से 22 सितंबर तक आहूत होने वाले संसद के विशेष सत्र में दोनों सदनों में प्रश्नकाल व शून्यकाल में कोई गैर सरकारी कामकाज पर फोकस नहीं होगा यानी केवल सरकारी कामकाज पर ही चर्चा होगी। यानी लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में जनता के लिए व जनता के प्रतिनिधित्व से जुड़ी किसी बात पर चर्चा नहीं होनी है। कहते हैं इस विशेष सत्र में चंद्रयान-3 मिशन की सफलता, अमृत काल के दौरान जी20 का सफल आयोजन और इन सबका श्रेय यशस्वी प्रधानमंत्री को दिए जाने पर जोर रहेगा। वहीं इस विशेष सत्र में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य देने का महत्वपूर्ण विधेयक भी पास करवाया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा कम करने के 4 साल बाद केंद्र सरकार इसे पूर्ण राज्य बनाने का बिल लेकर आ सकती है। पिछले दिनों संविधान के अनुच्छेद 370 पर दायर याचिका पर बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि ’उसके पास जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए क्या समय सीमा है, क्या रोड मैप है?
कांग्रेस के मौजूदा कोषाध्यक्ष पवन कुमार बंसल की विदाई की सुगबुगाहट सुनने को मिल रही है। सूत्र बताते हैं कि बंसल इन दिनों पार्टी हाईकमान से नाराज़ चल रहे हैं, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष खड़गे ने अपनी नवगठित टीम में उनके पंख कुतर दिए थे, उन्हें सीडब्ल्यूसी से हटा कर ‘परमानेंट इन्वाइटी’ में भेज दिया गया था। सो, बंसल पिछले पंद्रह दिनों से दिल्ली में थे, पर वे एक बार भी कांग्रेस मुख्यालय नहीं पधारे। दिल्ली से ही वे फिर चंडीगढ़ लौट गए। सूत्रों की मानें तो खड़गे व बंसल में तब से तलवारें तनी है जब से बंसल ने पार्टी अध्यक्ष को अपना खाता बही दिखाने से मना कर दिया था, बंसल का कहना था कि ’उनसे हिसाब-किताब मांगने का अधिकार सिर्फ सोनिया व राहुल के पास ही है।’ कहते हैं खड़गे ने बंसल के विकल्प की तलाश शुरू कर दी है, इस कड़ी में अजय माकन, आनंद शर्मा, मनीष चतरथ व गुरदीप सप्पल जैसे नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। मनीष चतरथ पहले भी अहमद पटेल व मोतीलाल वोरा के साथ काम कर चुके हैं। आनंद शर्मा की बेचैनी इसीलिए भी ज्यादा है कि पार्टी कोषाध्यक्ष के लिए राज्यसभा की एक अदद सीट पक्की रहती है।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व ने जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा है। शायद यही वजह है कि इन दिनों मनोज सिन्हा ताबड़तोड़ जम्मू-कश्मीर में विकास के नए प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाने में जुटे हैं। सूत्र यह भी बताते हैं कि मनोज सिन्हा की जगह लेने के लिए जनरल वीके सिंह को तैयार रहने को कहा गया है। जनरल वीके सिंह जम्मू-कश्मीर के अगले उप राज्यपाल या राज्यपाल (अगर जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य बन गया तो) का जिम्मा उठा सकते हैं। वैसे भी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने जनरल साहब से पहले से ही कह रखा है कि ’उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें गाजियाबाद से लोकसभा का अगला टिकट मिल पाना संभव नहीं होगा।’