Posted on 06 August 2022 by admin
राहुल गांधी ने कर्नाटक और तेलांगना राज्यों के चुनावी प्रबंधन और इसके निरंतर विश्लेषण का जिम्मा चुनावी रणनीतिकार सुनील कानूगोलू को सौंप रखा है। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की राय कानूगोलू के बारे में इतनी सकारात्मक नहीं थी, बावजूद राहुल ने कानूगोलू पर अपना संपूर्ण भरोसा जताया है। इससे पहले कानूगोलू अकालियों के लिए भी काम कर चुके हैं पर शिरोमणि अकाली दल को कानूगोलू के अनुभवों से कोई वांछित सफलता हासिल नहीं हो सकी। पर इस बार कानूगोलू पूरी फॉर्म में हैं। उन्होंने पिछले दिनों कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार को फोन किया और उनसे कहा कि ’कर्नाटक को लेकर मीटिंग है आप दिल्ली आ जाइए।’ इस पर शिवकुमार ने कहा कि ’आपसे मीटिंग ज्यादा से ज्यादा एक घंटे चलेगी, इसके लिए दिल्ली आने-जाने में पूरा दिन बर्बाद हो जाता है, क्यों नहीं हम ‘जूम कॉल’ पर ही बात कर लें।’ यह बात कानूगोलू को नागवार गुजरी और उन्होंने इस बात की शिकायत राहुल से कर दी। राहुल ने फौरन शिवकुमार को फोन लगा दिया और उनसे कहा कि ’आपकी हर बात स्वीकार करने की हमारी कोई मजबूरी नहीं, आपको कम से कम कानूगोलू की बात सुननी चाहिए थी।’ राहुल की यह बात शिवकुमार को बेहद नागवार गुजरी, उन्होंने लगभग पलटवार करने वाले अंदाज में कहा-’आप मुझसे ऐसे बात करते हो, वहीं सोनिया जी हैं जो कहती हैं- शिव यू आर लाइक माई सन, आखिर किस बात को मैं सच मानूं। आप कांग्रेस की स्थिति आज देख ही रहे हैं, फिर भी मैं चट्टान की तरह पार्टी के साथ खड़ा हूं, क्या इसका मुझे यह सिला मिलेगा?’ राहुल जज्ब करके रह गए। सुना है इन दिनों कर्नाटक कांग्रेस के एक पुराने नेता केजे जॉर्ज यानी केलाचंद्र जोसेफ जॉर्ज की गांधी दरबार में पूछ बढ़ गई है। जॉर्ज ने इंदिरा और राजीव के साथ भी नजदीकी से काम किया है, वे राज्य की 2 फीसदी क्रिश्यिचन आबादी की नुमाइदंगी भी करते हैं। और अभी राहुल ने उन्हें अपनी 2 अक्टूबर से शुरू होने वाली ’भारत जोड़ो यात्रा’ की कोर टीम का मेंबर भी बनाया है। यह यात्रा सोलह राज्यों से होकर गुजरेगी। अभी पिछले दिनों जॉर्ज को दिल्ली बुलाया था जहां उनकी सोनिया व राहुल से एक अहम मुलाकात हुई। सुना तो यही जा रहा है कि के जे जॉर्ज को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। क्या यह डीके के लिए खतरे की घंटी है?
Posted on 06 August 2022 by admin
हिमाचल प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक आहूत थी। इस बैठक में भाजपा के प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अनुराग ठाकुर, भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। खन्ना का स्पष्ट तौर पर मानना था कि ’हिमाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को बदलना आवश्यक है। उनकी जगह दिल्ली से किसी कद्दावर नेता को शिमला भेजना ही होगा।’ इस पर षेखावत ने कहा कि अनुराग ठाकुर एक बेहतर पसंद हो सकते हैं। यह सुनते ही जेपी नड्डा के चेहरे की भावभंगिमा बदल गई, इस बात को सबसे पहले अमित शाह ने भांपा, उन्होंने बात संभालते हुए कहा-’वैसे तो हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से बेहतर और कोई च्वॉइस नहीं हो सकती, पर हिमाचल जाने में इनकी दिलचस्पी नहीं है, वैसे भी हम इन्हें वहां का सीएम बना कर इनका ‘डिमोशन’ नहीं करना चाहते।’ शाह की बात सुन कर एक पल तो नड्डा भी भौच्चक रह गए कि इस बात पर आखिरकार उनकी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए।
Posted on 06 August 2022 by admin
बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे जिसे तीन साल यानी 36 महीनों में बन कर तैयार होना था, वह महज़ 28 महीनों में ही पूरा हो गया। 294 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेसवे की लागत आई कोई पंद्रह हजार करोड़ रुपए। इसका शिलान्यास पीएम मोदी ने 28 फरवरी 2022 को किया था और अभी पीएम ने ही पिछले दिनों 15 जुलाई 2022 को इसका उद्घाटन भी कर डाला। पर इस मानसून की झमाझम बारिश ने इस एक्सप्रेसवे की गुणवत्ता की कलई खोल दी। उद्घाटन के पांच दिन बाद ही तेज बारिश में एक पुल ने साथ छोड़ दिया। जालौन में सड़क धंस गई और इटावा के पास इसमें दरार आ गई। दरअसल, यूपीईआईडीए-उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ अवनीश अवस्थी की देखरेख में यह एक्सप्रेसवे बनकर तैयार हुआ है, अब सर्वशक्तिमान अवस्थी इस 31 अगस्त को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं, सो अपनी रिटायरमेंट से पहले उन्होंने इस शुभकार्य को संपन्न करवा दिया। रोड बनाने वाली कंपनियों का पैसा भी ससमय रिलीज हो गया। योगी रिटायरमेंट के बाद अवस्थी को एक बड़े पद से नवाजना चाहते हैं, वहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार मांग कर रहे हैं कि ’इस एक्सप्रेस वे के निर्माण में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच ईडी और सीबीआई से करवाई जाए।’ पर इन दोनों एजेंसियों को इन दिनों क्या जरा भी फुर्सत है?
Posted on 06 August 2022 by admin
संसद परिसर में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और केंद्रीय नेत्री स्मृति इरानी की तीखी नोक-झोंक इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। पर इसके साथ एक बड़ा सवाल यह भी है कि एक नामी एजेंसी की फोटो पत्रकार को सोनिया गांधी से बातचीत रिकार्ड करने या फोटो खींचने की इजाजत कैसे मिल गई, जबकि संसद के अंदर फोटो खींचना या कमेंट लेना पत्रकारों के लिए निषिद्द है। सोनिया गांधी की भी सुरक्षा बेहद चाक-चौबंद है, संसद में पीएम जिस गेट से आते हैं, सोनिया उनके पीछे वाले गेट से यानी गुरुद्वारा रकाबगंज वाले गेट का इस्तेमाल करती हैं। कमाल की बात देखिए आज जो एजेंसी सत्ता की सबसे बड़ी चेरी में शुमार हैं और जिस एजेंसी की महिला पत्रकार ने सोनिया का कमेंट लिया, यह वही एजेंसी है जिसे बनवाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक महती भूमिका थी। राजीव ने पीएम रहते यह महसूस किया कि ’समुचित कवरेज के लिए केवल दूरदर्शन या आकाशवाणी की बाट जोहना ठीक नहीं, क्यों नहीं एक स्वतंत्र वीडियो व फोटो एजेंसी को अस्तित्व में आना चाहिए,’ तब राजीव गांधी ने ही अपने पीआईओ प्रेम प्रकाश और राजमोहन राव को ऐसी किसी एजेंसी को शुरू करवाने के निर्देश दिए थे, तब इस नई एजेंसी का जन्म हुआ, जो आज कहीं गहरे भगवा रंग में रंगी है।
Posted on 06 August 2022 by admin
भले ही दुष्यंत चौटाला हरियाणा की भाजपा सरकार में शामिल हों, पर सूत्र बताते हैं कि आने वाले डेढ़-दो महीने चौटाला परिवार के लिए अग्नि परीक्षा लेकर आ सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि इन दिनों चौटाला परिवार और भाजपा के दरम्यान सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। अगर स्थितियां यूं ही बहाल रही तो हरियाणा के इस सबसे बड़े राजनैतिक परिवार के आय से अधिक संपत्ति का मामला कोर्ट में आ सकता है। जिस दिन ऐसा हुआ चौटाला की पार्टी के विधायक भाजपा का दामन थाम सकते हैं। भूपिन्दर हुड्डा भी ऐसे ही किसीं हैं।
Posted on 06 August 2022 by admin
’जब धू-धू कर जले थे सारे अरमान मेरे
माचिस की डिब्बियों पर थे निशान तेरे’
अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को भी बखूबी इस बात का इल्म है कि इस बदलते दौर की सियासी लड़ाई के दंगल में उसके सामने जो योद्धा खड़ा है वह कौन है? उसकी सिद्दहस्ता क्या है? और क्यों वह बार-बार उसे ‘धोबिया पाट’ देने में सक्षम है। प्रतिद्वंद्वी योद्धा ने मीडिया को अपनी चेरी बनाया हुआ है जो उसके पक्ष की आधी लड़ाई तो खुद ही लड़ लेती है। जयराम रमेश ने जब से कांग्रेस के मीडिया प्रबंधन के कार्यभार को संभाला है वे लगातार इसके चाल-चेहरे व चरित्र को मुस्तैद और दुरूस्त बनाने की कोशिशों में जुटे हैं, पर उनके ही अपने सिपहसालार चूक रहे हैं। गुरुवार को ईडी दफ्तर में सोनिया गांधी की पहली पेशी होनी थी, कांग्रेस ने देशव्यापी प्रदर्शन की रूपरेखा पहले से तय कर रखी थी, संसद कवर कर रहे पत्रकारों, फोटो व वीडियो जर्नलिस्ट को बाखबर करते कांग्रेस के कम्युनिकेशंस इंचार्ज विनीत पूनिया का संदेशा आता है कि सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में कांग्रेस के लोकसभा और राज्यसभा के सांसदगण पार्लियामेंट हाउस से गुरूद्वारा रकाबगंज तक पैदल मार्च करेंगे, जहां पहले से बसें खड़ी होंगी, फिर ये सभी बसों में सवार होकर अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए ईडी ऑफिस तक जाएंगे, यह भी कहा गया कि सांसदों के इस मार्च का नेतृत्व स्वयं राहुल गांधी स्वयं करेंगे। दरअसल संसद भवन में कई द्वार हैं, रकाबगंज गुरूद्वारा वाले रास्ते तक संसद के अंदर ही अंदर से पहुंचा जा सकता है। तब पूनिया ने पत्रकारों को बताया कि यह मार्च गेट नंबर चार पर आएगा। पूरी मीडिया, टीवी कैमरे सब गेट नंबर चार पर मुस्तैद थे, अचानक मीडिया वालों को खबर मिली कि मार्च गेट नंबर एक से निकल रहा है, सारे मीडिया वाले भागे-भागे गेट नंबर एक पर पहुंचे तो देखा उस मार्च से राहुल गांधी ही नदारद हैं। राहुल सीधे अपनी गाड़ी से दस जनपथ चले गए थे, वहां से वे अलग गाड़ी में ईडी ऑफिस पहुंचे, सोनिया व प्रियंका एक ही गाड़ी में साथ ईडी ऑफिस के लिए निकलीं। विजुअल मीडिया इंतजार करता रहा पर वे उन मुफीद पलों को अपने कैमरों में कैद नहीं कर पाए। क्या यह कांग्रेस के मीडिया मैनेजमेंट की नाकामी है?
Posted on 06 August 2022 by admin
आसमां छूती महंगाई को लेकर कांग्रेसी नेतृत्व ने तय किया कि संसद परिसर में अवस्थित गांधी जी की प्रतिमा के आगे उनके सांसद विरोध प्रदर्शन करेंगे। इस प्रदर्शन का वक्त मुकर्रर किया गया सुबह के 10 बजे, क्योंकि ग्यारह बजे से संसद चालू हो जाती है। पर वक्त पर वहां पहुंचने वाले सांसद बस गिनती के थे, वे भी पार्टी के वरिष्ठ नेतागण जैसे पी.चिदंबरम, मल्लिकार्जुन खड़गे आदि। खुद जयराम रमेश बाहर खड़े होकर कांग्रेसी सांसदों के आने का इंतजार कर रहे थे, उन्हें भर-भर कर डांट भी पिला रहे थे। फिर भी ग्यारह बजे तक कांग्रेसी सांसदों की गिनती पूरी नहीं हो पाई।
Posted on 06 August 2022 by admin
ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन गवर्नर जगदीप धनखड़ के बीच छत्तीस का आंकड़ा कोई छुपी बात नहीं रह गई थी। पर दार्जिलिंग में जब इस दफे असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा और ममता बनर्जी के बीच एक अहम मुलाकात हुई तो इसके बाद से भाजपा और एनडीए को लेकर ममता के तेवर किंचित ढीले पड़ गए, इस अहम मुलाकात के बाद ही तृणमूल ने ऐलान कर दिया कि ’वह उप राष्ट्रपति पद (जिसमें धनखड़ बतौर एनडीए उम्मीदवार मैदान में हैं) की मतदान प्रक्रिया से दूर रहेगी यानी टीएमसी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी।’ जबकि गवर्नर रहते धनखड़ ने बंगाल में ममता की नाक में दम कर रखा था, बतौर गवर्नर उन्होंने दीदी पर अत्याधिक तुष्टिकरण, सांप्रदायिक संरक्षण और माफिया सिंडिकेट द्वारा जबरन वसूली का आरोप भी लगाया था। वहीं ममता लगातार पिछले काफी समय से विपक्षी एका मजबूत करने का स्वांग भर रही हैं। दीदी ने आरोप लगाया कि ’कांग्रेस ने उप राष्ट्रपति पद के लिए मारग्रेट अल्वा का नाम तय करने में उनकी राय नहीं ली।’ वैसे भी पिछले साल दिसंबर में ममता ने यूपीए के पूरे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए पूछा था कि ’यह यूपीए क्या है?’ फिर इसका जवाब भी उन्होंने स्वयं दे दिया था-’कहीं कोई यूपीए नहीं है।’ ममता वहीं नहीं रुकीं, उन्होंने बकायदा सोनिया गांधी पर भी निशाना साधा और तल्ख लहज़ों में पूछा-’हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए, क्या यह कोई संवैधानिक बाध्यता है?’ यह तो ममता के लगातार रंग बदलते रहने की ही एक अदा है।
Posted on 06 August 2022 by admin
उप राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस की ओर से मारग्रेट अल्वा का नाम तय करवाने में राजीव गांधी जमाने के वफादार वी.जार्ज की एक महती भूमिका मानी जा रही है। सूत्र बताते हैं कि आर.माधवन के ऊपर जब से रेप के आरोप लगे हैं दस जनपथ ने उन्हें किंचित दरकिनार कर दिया है। इसके बाद एक बार फिर से पहले से दरकिनार हुए वी.जार्ज की 10 जनपथ में सक्रिय वापसी हो गई है। यह भी कहा जाता है कि कई दशक पूर्व राजीव गांधी से वी.जार्ज को मिलवाने वाली मारग्रेट अल्वा ही थीं। पर कहते हैं बाद में दोनों के रिश्ते में तब खटास आ गई, जब सोनिया गांधी ने राज्यसभा में भेजने के लिए वी जॉर्ज का नाम तत्कालीन पीएम नरसिंहा राव को भेजा था, पर राव ने 1993 में जॉर्ज की जगह अल्वा को ऊपरी सदन भेज दिया। इस बात का जिक्र अल्वा ने अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक ‘करेज एंड कमिटमेंट’में भी किया है कि कैसे जब नरसिंहा राव ने जॉर्ज की जगह उन्हें राज्यसभा भेज दिया तो सोनिया गांधी इस बात को भूली नहीं। सो, जब 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो उसमें मंत्री पद के लिए मारग्रेट अल्वा के नाम पर विचार भी नहीं किया गया। इस के बाद जब सोनिया नरम पड़ीं तो 2009 में उन्हें गवर्नरी दे दी गई।
Posted on 06 August 2022 by admin
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार भी अब भाजपा के निशाने पर आ गई है। अब से कोई सवा साल बाद छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें बघेल अपने कार्यों के दम पर सत्ता में पुनर्वापसी के सपने संजो रहे हैं। पर उनकी सरकार को अस्थिर करने में उनके पुराने दोस्त ही शामिल हैं। कभी बघेल और सिंहदेव की जोड़ी को छत्तीसगढ़ में ’जय-वीरू’ की जोड़ी कहा जाता था। कोई पौने चार वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल के बीच ढाई-ढाई साल के सीएम पद पर सहमति बनी। पर जब सिंहदेव की बारी आई तो सियासी परिस्थितियों ने उनके हाथ से यह मौका छीन लिया। नाराज़ सिंहदेव ने एक चार पेज की चिट्ठी जारी कर अपना मंत्री पद छोड़ने का ऐलान कर दिया है। बघेल का दावा था कि इस राष्ट्रपति चुनाव में छत्तीसगढ़ कांग्रेस का कोई भी विधायक क्रॉस वोटिंग नहीं करेगा, पर द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में उनके छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी, जो कहीं न कहीं सिंहदेव के नेतृत्व में बगावत का आगाज़ है। मौके की नजाकत को भांपते भाजपा बघेल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई है, जिस पर 27 जुलाई को चर्चा होनी है। छत्तीसगढ़ की मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस के 71, भाजपा के 14, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के 3 और बसपा के 2 विधायक हैं। इस लिहाज से भी बघेल की कुर्सी को फिलवक्त कोई खतरा नहीं दिखता।