Archive | June, 2022

केंद्र सरकार से 15 हजार करोड़ क्यों मांग रहे हैं नवीन

Posted on 19 June 2022 by admin

नवीन पटनायक ने सियासत के बारीक गुर अपने पिता बीजू नटनायक से सीखे हैं। पिछले दिनों नवीन पटनायक को जब केंद्रनीत भाजपा सरकार की ओर से यह संदेशा मिला कि उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार का साथ देना है, तो हां कहने के साथ-साथ नवीन ने ठंडे बस्ते से अपनी पुरानी मांग का वह पुलिंदा भी झाड़-पोछ कर बाहर निकाल लिया है जिसमें ओडिशा सरकार को ‘फूड सब्सिडी’ के मद में केंद्र सरकार से 10,333 करोड़ रुपए मिलने थे। यह भुगतान लंबे समय से लंबित है सो ओडिशा सरकार ने इस पर 5454.67 करोड़ का अतिरिक्त ब्याज भी जोड़ दिया है। ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार का कहना है कि ’चूंकि केंद्र सरकार ने भुगतान में इतनी देर लगाई है, इस वजह से उन्हें इतने करोड़ का अतिरिक्त ब्याज का भी बोझ उठाना पड़ रहा है।’ भाजपा के रणनीतिकार चाहते थे कि नवीन एक बार दिल्ली आकर पीएम मोदी से मिल लें, पर नवीन 28 जून को यूएई और इटली की विदेश यात्रा पर निकल रहे हैं। वेटिकन सिटी में इस बार उनका पोप से मिलने का भी कार्यक्रम है। नवीन ओडिशा के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए इन देशों की यात्रा कर रहे हैं, उन्हें दुबई में बसे एनआईआर उड़िया लोगों से मिलना है, इसके बाद वे इटली के लिए निकल जाएंगे। वैसे भी नवीन पटनायक की विदेश यात्राओं में कम ही दिलचस्पी रही है। 22 वर्षों के अपने शासनकाल में वे खुद विदेश जाने के बजाए अपने मंत्रियों और अफसरों को ही ऐसी यात्राओं पर भेज दिया करते थे। आखिरी बार वे 2012 में ‘डीएफआईडी’ के निमंत्रण पर लंदन गए थे।

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शंकराचार्य की शरण में प्रहलाद पटेल

Posted on 19 June 2022 by admin

केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का पूरा परिवार ही सन् 1992 से यानी लगभग 30 वर्षों से लगातार जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का विरोध करता आया था। पर पिछले दिनों प्रहलाद पटेल ने अपने उस कदम से सबको अचंभित कर दिया जब वे अचानक अपने पिता, और अपने विधायक भाई (जो नरसिंहपुर के विधायक हैं) के साथ त्रिपुर संदुरी के दर्शन को पहुंच गए, जहां उन्होंने शंकराचार्य के भी दर्शन किए और उनका आशीर्वाद लिया। पटेल परिवार तकरीबन दो घंटे तक वहां रहा। सनद रहे कि प्रहलाद पटेल ने शंकराचार्य से ही गुरु दीक्षा ली थी, बावजूद इसके लगातार उन्होंने तीन दशक तक शंकराचार्य के विरोध की अलख जगाई। कहते हैं इन दिनों शंकराचार्य अस्वस्थ हैं, इस नाते पीएम मोदी ने फोन कर उनसे बातचीत की और उनका हालचाल पूछा, इस बात की खबर जब प्रहलाद पटेल परिवार को लगी तो वह घुटनों पर आ गया।

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सिंहदेव भाजपा में क्यों नहीं गए

Posted on 19 June 2022 by admin

पिछले काफी समय से बीजू जनता दल के नेता और पूर्व सांसद कलिकेश नारायण सिंहदेव प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा से मिलने का समय मांग रहे थे, पर कुछ कारणों से उन्हें मिलने का समय ही नहीं मिल पा रहा था। इसके बाद उन्होंने ओडिशा के कुछ ब्यूरोक्रेट्स से संपर्क साध सरकार के नंबर दो अमित शाह से मिलने का प्रयास किया पर उन्हें यहां भी सफलता हाथ नहीं लगी। तब उनके संकटमोचक बनकर अवतरित हुए धर्मेंद्र प्रधान जिन्होंने सिंहदेव की मुलाकात अमित शाह से करवा दी। कहते हैं जब इस मुलाकात की खबर नवीन पटनायक को लगी तो वे बेतरह उखड़ गए, उन्होंने फोन पर ही सिंहदेव को हड़काते हुए कहा-’आपकी मर्जी आप जिस पार्टी में जाना चाहें आप जा सकते हैं, पर बोलांगिर में राज परिवार ने जिस तरह गरीबों की जमीनें हथिया रखी है, हमें उन गरीबों को न्याय दिलवाना ही पड़ेगा, मुमकिन हुआ तो हम भी योगी की तरह बुलडोजर का सहारा लेंगे।’ यह सुनने भर की देर थी कि सिंहदेव के कदम ठिठक गए।

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नकवी को क्यों हटना पड़ा

Posted on 19 June 2022 by admin

भाजपा की चाहतों के सफर को सुर्ख ख्वाब देने और मुकम्मल शब्दावलियों को रोशन करने में मुख्तार अब्बास नकवी की महती भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता। उनकी मीडिया फ्रेंडली शख्सियत कई-कई दफे भाजपा के काम आई है, सो जब इस दफे उन्हें राज्यसभा नहीं दी गई तो हैरतों ने जैसे आसमां सिर पर उठा लिया, 22 सीटें खाली थीं, कई ऐसे नामों की भी लॉटरी लग गई जिन्होंने ऊपरी सदन की कल्पना नहीं की थी, पर नकवी का नंबर नहीं लगा। जबकि उन्होंने अल्पसंख्यक मंत्रालय को भी इस अंदाज में चलाया कि मंत्रालय के हौसले चमक उठे। नकवी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ’हुनर हाट’ ने सरकार की लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए। जब से ज्ञानवापी विवाद ने तूल पकड़ा है संघ और भाजपा ने एक नया ‘हिंदू नैरेटिव’ तैयार करने की कोशिश की है यानी मुस्लिम मुक्त पार्टी, संसद और सरकार। पर पार्टी में एक वर्ग ऐसा भी है जो नकवी को रामपुर उप चुनाव में उतारना चाहता था। रामपुर में 47 फीसदी हिंदू, 4 फीसदी सिख और 49 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। ओवैसी भी यहां से अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतारने की सोच रहे हैं। अगर आजम खान की पत्नी या बेटे में से कोई मैदान में नहीं उतरता है तो वे भी जाने-अनजाने यहां भाजपा की मदद करेंगे। और यह मोदी सरकार की नाक का सवाल भी होगा सो सीएम योगी समेत पूरा प्रशासन भी यहां मुस्तैद रहेगा। पर इतने पर भी नकवी को रामपुर से मैदान में नहीं उतारा गया, भाजपा ने उनकी जगह घनश्याम लोधी को मैदान में उतारा है। क्या यह शालीन और मीडिया फ्रेंडली नकवी के लिए विदाई काल है?

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क्या संदीप सिंह से नाराज़ हैं प्रियंका?

Posted on 19 June 2022 by admin

पिछले दिनों प्रियंका गांधी दो दिनों के दौरे पर लखनऊ आई थी, जहां उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं की एक अहम मीटिंग लेनी थी। तयशुदा स्थान पर एंट्री से पहले हर कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता से आग्रह किया गया कि वे अपने फोन बाहर रिसेप्शन पर जमा कर दें फिर सभागार में दाखिल हों। सभागार में भी उम्मीद से कम पार्टी कार्यकर्ता जुटे। कार्यकर्ताओं की अपनी प्रियंका दीदी से शिकायत थी कि यूपी चुनाव के बाद उन्होंने कार्यकर्ताओं की सुध लेना जरूरी नहीं समझा। कुछ लोग अपनी नाराज़गी दिखाने के लिए मीटिंग छोड़ कर जाने लगे तो प्रियंका ने भी आवेश में आकर कह दिया-’वैसे भी बहुत लोग पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं, आप लोग भी जाना चाहें तो जा सकते हैं।’ इसके बाद उन्नाव से आए पार्टी कार्यकर्ताओं ने प्रियंका से अनुरोध किया कि वे 2024 का चुनाव रायबरेली से लड़ने की न सोचें, चूंकि उनका जिला रायबरेली से लगता है इसीलिए वे वहां के लोगों का मिजाज बता सकते हैं। इस पर वहां मौजूद संदीप सिंह जो प्रियंका के सचिव हैं, उन्होंने उन्नाव के कार्यकर्ताओं को डपटते हुए कहा कि ’आप सभी शांत होकर बैठ जाइए।’ इस पर कुछ पार्टी कार्यकर्ता उखड़ गए और उन्होंने संदीप को आड़े हाथों लेते हुए प्रियंका से कहा-’दीदी ये जो हमें चुप करा रहे हैं, इन्होंने ही राज्य में सबसे ज्यादा पार्टी का भट्टा बिठाया है। इनसे पूछो इन्होंने इतना पैसा अचानक से कहां से कमा लिया?’ इसके बाद प्रियंका ने कहा इस बार प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव गुप्त वोटिंग से किया जाएगा, पर कार्यकर्ताओं की इस बात में अब कम ही दिलचस्पी बची थी। प्रियंका ने भी मीटिंग के बाद संदीप सिंह को खूब खरी-खोटी सुनाई और जहां उन्हें दो दिन लखनऊ रूकना था, एक दिन में ही दिल्ली वापिस लौट आईं।

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गांगुली पर भगवा दांव क्यों नहीं है मामूली

Posted on 19 June 2022 by admin

’आसमां से कुछ तूने भी तो मांगा होगा
यूं ही चांद उतर नहीं आया है तेरे रुखसार पर’

चूंकि भाजपा के लिए बंगाल में अपनी उपस्थिति बनाए रखना बेहद जरूरी है, सो उसे सौरव गांगुली जैसे एक जीवित बंगाली प्रतिमान को गहरे भगवा रंग में रंगने की आवश्यकता आन पड़ी, ममता बनर्जी के उस चैलेंज को भी भाजपा किंचित गंभीरता से ले रही है जब दीदी ने खुल्लम खुल्ला भाजपा को ललकारा है कि ’अब बीजेपी के लिए बंगाल में ‘नो एंट्री’ है’ सो भाजपा के लिए गांगुली एक तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं।’ भाजपा भले ही उन्हें राज्यसभा में मनोनीत कोटे से ला रही हो पर गांगुली व भाजपा में कोई खिचड़ी पक चुकी है इसका खुलासा इस क्रिकेटर के उस हालिया ट्वीट से सामने आता है जिसमें उन्होंने इशारों-इशारों में कह दिया है ’वह कुछ नया करने की योजना बना रहे हैं’ पिछले दिनों जब गृह मंत्री अमित शाह बंगाल के दौरे पर थे तो बकायदा उन्हें पूरे दल-बल के साथ बंगाल टाईगर के नाम से मशहूर गांगुली ने उन्हें अपने घर खाने पर न्यौता था। दरअसल, गांगुली के पीछे कई वर्षों से भाजपा हाथ धोकर पीछे पड़ी थी कि वे पार्टी में शामिल हो जाएं, पर गांगुली टस से मस नहीं हो रहे थे। इस बार गांगुली की बदली भाव-भंगिमाओं के पीछे उनकी मजबूरियां ज्यादा दिख रही हैं। गांगुली का बीसीसीआई का अध्यक्षीय कार्यकाल इस 27 जुलाई को खत्म हो रहा है। बीसीसीआई यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का अध्यक्ष बनने से पहले वे ‘कैब’ यानी क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष थे, फिर उन्होंने 2019 में बीसीसीआई का कार्यभार संभाला। लोधा कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक किसी भी शख्स को लगातार छह साल अध्यक्ष रहने के बाद 3 साल का अनिवार्य ब्रेक लेना ही होगा। गांगुली ने 3 साल कैब फिर 3 साल निरंतर बीसीसीआई का अध्यक्ष पद संभाला है पर इस बार गांगुली के लिए 3 साल के ’कूलिंग पीरियड’ को ’वेव ऑफ’ करने के लिए बीसीसीआई कोर्ट चली गई है। बीसीसीआई का कहना है कि गांगुली इतना बड़ा नाम है कि उन्हें इस नियम के एक अपवाद के तौर पर देखा जाना चाहिए, यह मामला कोर्ट में लंबित है। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव आदित्य वर्मा जो इस पूरे मामले को कोर्ट में लेकर गए थे, उन्होंने भी अब गांगुली के समर्थन में अपने रंग बदल लिए हैं, उन्होंने भी कुछ नामों पर कंप्रोमाइज करने की कोर्ट में दलील दी है। अपने अनिश्चित भविष्य को देखते हुए गांगुली भी भगवा होने को राजी हो गए हैं, भाजपा की असली दिक्कत 2024 के आम चुनावों में अपनी मौजूदा 18 सीटों को बचाए रखने की है, गांगुली अगर फ्रंट पर आकर खेलें तो यकीनन राज्य में भगवा संभावनाओं को वृहतर आयाम मिलेगा।

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क्या फिर से टल गई है राहुल की ताजपोशी?

Posted on 19 June 2022 by admin

’तेरी चाहतों का इस कदर असर है, तेरे सिवा कोई और नहीं जहां तक ये सहर है
ज़िद है कि तेरे लिए फलक से चांद तोड़ लाऊं, जमीं से आसमां का जो ये सफर है’

कहां तो तय था कि 22 अगस्त को राहुल गांधी बतौर अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल लेंगे, गांधी परिवार के वफादारों ने इस बात की पुख्ता व्यवस्था की हुई थी कि कैसे पार्टी की संवैधानिक मान्यताओं की परिपाटी पर चलते हुए राहुल को पार्टी का निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित करवा लिया जाएगा। विरोध के बागी स्वरों को पहले ही सोनिया गांधी ने पार्टी के विभिन्न फोरम पर ‘एडजस्ट‘ करना शुरू कर दिया है। पर अभी-अभी गुजरात और हिमाचल की विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी के लिए एक एजेंसी ने जो जनमत सर्वेक्षण करवाए हैं उसके नतीजों ने गांधी परिवार की मंशाओं को झकझोर दिया है। इस जनमत सर्वेक्षण के प्रारंभिक रुझानों में कांग्रेस इन दोनों प्रदेशों में बेतरह पिछड़ती नज़र आ रही है। सूत्र बताते हैं कि इस बात का सबसे पहले सोनिया गांधी ने संज्ञान लिया है, वह नहीं चाहती कि राहुल अगस्त में पार्टी की कमान संभाले और दिसंबर माह में हो रहे चुनावों की हार का ठीकरा उनके मत्थे फोड़ दिया जाए, सो सोनिया का आग्रह है कि राहुल कर्नाटक चुनाव से पहले पार्टी की बागडोर संभालें, कर्नाटक में पार्टी को उम्मीद है कि कांग्रेस भाजपा से बेहतर प्रदर्शन करेगी, सो इसका श्रेय राहुल के उत्साही नेतृत्व को दिया जा सकेगा। दूसरी ओर प्रियंका गांधी हैं, जिनकी सोच है कि दिसंबर के विधानसभा चुनावों में तमाम पोस्टर से लेकर परचमों तक राहुल होंगे, कांग्रेस की सोच, उनकी नीतियों और रैलियों के केंद्र में राहुल ही होंगे, सो राहुल चाहे पार्टी के अध्यक्ष हों या ना हों इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, हार-जीत का सेहरा उन्हें ही लेना होगा, तो फिर अध्यक्ष बन कर क्यों न इस चुनौती को स्वीकार किया जाए। प्रियंका ने पार्टी फोरम पर भी जोर देकर कहा है कि कांग्रेस को अध्यक्षीय चुनाव नहीं टालने चाहिए, इस बारे में अंतिम कॉल राहुल को ही लेना है।

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अपने तीन सीएम बदल सकती है भाजपा

Posted on 19 June 2022 by admin

जीत की आंधियों पर सवार भगवा उम्मीदों ने इस जश्न के माहौल में भी अपने होशो-हवास नहीं खोए हैं। 2024 के आगामी आम चुनावों को केंद्र में रख कर भाजपा में गहन विमर्श मंथन के दौर अभी से जारी है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो पिछले कुछ दिनों में पार्टी की टॉप लीडरशिप की कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। इन हाई प्रोफाइल बैठकों में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने हिस्सा लिया। इस बैठक में तय हुआ है कि ’भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों की बकायदा रिपोर्ट कार्ड को मद्देनजर रखते उनके भविष्य के बारे में फैसला लिया जाएगा।’ यह भी संकेत मिले हैं कि आने वाले दिनों में कम से कम तीन भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बदला जा सकता है। हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक खुलासा नहीं हुआ है पर सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश, हिमाचल और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों पर हाईकमान की यह तलवार लटक रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को एक बार फिर से अभयदान मिल सकता है। भाजपा नेतृत्व इस बात का पक्षधर बताया जा रहा है कि ऐसे सीएम बनाए जाने चाहिए जो अपने दम पर चुनाव में जीत दिलवा सकें। सूत्र बताते हैं कि इस हाई प्रोफाइल मीटिंग में उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी और केशव प्रसाद मौर्य के चुनावी हार की भी गंभीर समीक्षा हुई, बैठक में यह निष्कर्ष निकाला गया कि धामी के पास अपने को साबित करने के लिए बहुत कम समय था, जबकि मौर्य को बतौर उप मुख्यमंत्री पूरे पांच साल मिले थे, फिर भी वे चुनाव हार गए। ‘मोदी मैजिक’ से भले ही यूपी और उत्तराखंड में भाजपा की वापसी हो गई हो पर पार्टी की सीटें कम हो गई। 2024 के चुनाव में इस सबक को ठीक से कंठस्थ करने का संकल्प लिया गया है।

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वंशवाद के खिलाफ मुखर होता संघ

Posted on 19 June 2022 by admin

इस 19 मई को संघ के थिंक टैंक में शुमार होने वाले रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी ने नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल सभागार में एक सेमिनार का आयोजन किया, जिसका विषय था कि ’वंशवाद से निकले राजनैतिक दल लोकतांत्रिक शासन के लिए कैसे खतरा है’, सेमिनार का उद्घाटन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया, इसकी अध्यक्षता महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने की, सेमिनार की अवधारणा भाजपा के राज्यसभा सांसद और इस प्रबोधिनी के उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्दे की थी। इस कार्यक्रम में सबसे हैरतअंगेज उपस्थिति तो केंद्रीय इस्पात मंत्री और जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह की रही, जिनकी राज्यसभा की सदस्यता भाजपा से उनकी नजदीकियों की वजह से खतरे में पड़ गई है, नीतीश उनके इस बदले स्वांग को पचा नहीं पा रहे। पर इस सेमिनार में उस वक्त हंगामा बरप गया जब पोस्ट लंच सेशन में बोलने के लिए जेएनयू के दक्षिणपंथी विचारक डॉ. आनंद रंगनाथन बोलने को आमंत्रित किया गया। आनंद रंगनाथन को अपने उद्बोधन में उस ‘रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क’ की बात करनी थी जो वंशवादी पार्टियों पर नकेल कस सके। जेएनयू के इस यंग प्रोफेसर की विद्वता का सब लोहा मानते हैं और वे संघ के एक प्रमुख थिंक टैंक में शुमार होते हैं, ये दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े-लिखे हैं और जेएनयू में ‘मोल्युकुलर मेडिसिन’ पढ़ाते हैं। ये तीन किताबें भी लिख चुके हैं। जब प्रोफेसर साहब ने बोलना षुरू किया तो वंशवाद पर अन्य राजनैतिक दलों के साथ उन्होंने भाजपा पर भी हल्ला बोल दिया। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि आज भी भाजपा के 43 से ज्यादा सांसद और सवा सौ से ज्यादा विधायक वंशवाद की राजनीति की उपज है। प्रोफेसर साहब अपनी रौ में बोलते गए और सभागार में सन्नाटा छा गया, बाद में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से प्रोफेसर रंगनाथन के इस धुआंधार भाशण के वीडियो डिलीट कर दिए गए, बस अब उस उद्बोधन की स्मृति शेष है।

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मंत्री जी को इंटरव्यू देना महंगा पड़ा

Posted on 19 June 2022 by admin

पिछले दिनों केंद्रीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने एक अंतरराष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका को अपना लंबा इंटरव्यू दिया, जो भारत की विदेश नीति खास कर क्वाड और यूक्रेन मुद्दे को लेकर था। कहते हैं जैसे यह इंटरव्यू पीएमओ की संज्ञान में आया, उन्हें तलब कर कहा गया कि ’भले ही आप विदेश मंत्री हों पर भारत की आधिकारिक विदेशी नीति पर बोलने या इंटरव्यू देने से पहले आपको पीएमओ की मंजूरी लेनी चाहिए थी, क्योंकि यह पीएम का विशेषाधिकार है।’ विदेश मंत्री को हिदायत दी गई कि वे फौरन अपना इंटरव्यू छपने से पहले उसे कैंसिल करें। हैरान मंत्री ने फौरन उस साप्ताहिक पत्रिका के इंडिया हेड से बात की, पर पत्रिका वह इंटरव्यू रोकने के लिए तैयार नहीं हुई। तो फिर न्यूयॉर्क स्थित काउंसलेट जनरल को आगे आना पड़ा वे भागे-भागे पत्रिका के दफ्तर में पहुंचे और उसके एडिटर इन चीफ से मान मुनौव्वल की। बड़ी मुश्किल से उन्होंने पत्रिका के प्रधान संपादक को इस इंटरव्यू के प्रकाशित होने से रोकने के लिए मनाया। फिर नाराज़ संपादक ने कहा वे भले ही इंटरव्यू रोक रहे हैं, पर कोई उन्हें यह ट्वीट करने से नहीं रोके कि इस मामले में भारत और चीन की नीतियों में कोई फर्क नहीं है।

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