Posted on 03 October 2021 by admin
’बुतों से भर गई है बस्तियां, हर तरफ पत्थरों में ढल गए किरदार हैं
किधर देखूं, कहां सिर झुकाऊं, एक सिर है और ये बुत हजार हैं’
वो जमाना और था जब सियासत जिंदा आदमी की इबादत मानी जाती थी, वक्त बदला, सोच बदली और राजनीति का अंदाज बदला। अब तो सियासतदाओं के आदर्श भी पत्थर हो गए हैं और उनके आराध्य भी जैसे पत्थरों में ही ढल गए हैं। यह बीता सप्ताह गवाह है जब ग्रेटर नोएडा के ‘मिहिर भोज बालिका डिग्री कॉलेज’ में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के समक्ष लगे शिलापट से गुर्जर शब्द हटने से बवाल मच गया। गुर्जर समाज को यूं भी भाजपा यूपी में अपना परंपरागत वोट बैंक मानती रही है, अभी हालिया दिनों में भी (इस बवाल से पहले) भाजपा का अंदरूनी सर्वे बता रहा था कि 69 फीसदी गुर्जर वोटर भाजपा के समर्थन में हैं। गुर्जर समाज को उम्मीद थी कि जब प्रदेश के मुख्यमंत्री यहां पधार रहे हैं तो वे इस कॉलेज के लिए किसी बड़ी सहायता राशि का ऐलान भी करेंगे, योगी आए जरूर, पर ऐलान स्थगित रहा। 1994 में जब मुलायम सिंह यादव सीएम रहते आए थे तो उन्होंने इस कॉलेज को 20 लाख रूपए दिए थे, कांग्रेस नेता राजेश पायलट 95-96 में आए तो उन्होंने 11 लाख रूपयों की धन राशि दी। जब यूपी में किसान आंदोलन का असर दिखने लगा तो योगी सरकार ने भी सियासी चतुराई दिखाते हुए बुतों की राजनीति को हवा देनी शुरू कर दी। योगी सरकार अलीगढ़ जिले के लोधा में जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एक विश्वविद्यालय का निर्माण करवा रही है, जिसका शिलान्यास पीएम मोदी के कर कमलों से हुआ, महेंद्र प्रताप को जाट राजा बता कर। जबकि अलीगढ़ से महज़ चंद किलोमीटर के फासले पर मुईसान के किले में लगी राजा की मूर्ति के आसपास मुद्दतों से कोई सफाई भी नहीं हुई है। सनद् रहे कि ये वही राजा महेंद्र प्रताप हैं जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने के लिए अपनी जमीन दे दी, सारी नकदी दे दी। पर कभी खुद को जाट नहीं कहा, अपने को खालिस हिंदुस्तानी बताते रहे, शायद इसीलिए इन्होंने अपना नाम भी पीटर पीर प्रताप रख लिया था। वे जहां भी जाते थे, उनके साथ उनका एक मुस्लिम और एक दलित साथी हमेशा साथ चलता था। 1957 के चुनाव में ये निर्दलीय चुनाव लड़ कर भी अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त करा चुनाव जीते थे। आज सिर्फ उन्हें जाट नेता साबित करने की होड़ मची है। पिछले यूपी चुनाव में राजभर वोटों पर दांव लगाने के लिए भगवा पार्टी ने राजा सुहेलदेव को ढूंढा था, इन्हीं सुहेलदेव की मान्यता पहले पासी नेता के तौर पर थी। गोरखपुर के कुर्मी-सेंथेवार को भी योगी ने अपने पराक्रम से क्षत्रिय साबित कर दिया। इस खेल में सपा कहां पीछे रहने वाली थी, कप्तान यादव की मूर्ति का अनावरण अखिलेश यादव के हाथों हुआ। वहीं प्रदेश के नाराज़ ब्राह्मणों को लुभाने के लिए परशुराम की मूर्ति लगाने का वायदा सपा और बसपा दोनों ही पार्टियां कर रही हैं। यूपी के निषाद वोटों को गोलबंद करने की कोशिशों के तहत उन्नाव में निषादों के बड़े नेता मनोहर लाल की मूर्ति का अनावरण सपा नेता के हाथों हुआ। मनोहर लाल 1993 में मुलायम सरकार में मतस्य पालन मंत्री रह चुके हैं। भले ही निषाद वोटरों को लुभाने के लिए दस्यु सुंदरी फूलन देवी की मूर्ति लगाने की इजाजत प्रशासन ने नहीं दी हो, पर बिहार के मुकेश सहनी ‘विकासशील इंसान पार्टी’ फूलन देवी की मूर्ति लगाने के लिए सतत् प्रयासरत है। जिंदा कौमें पाषाण की मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठा कर क्या साबित करना चाहती हैं? जाति-समुदाय की नुमाइंदगी को महिमामंडित करने के प्रयासों में जुटी सियासी पार्टियों को राजा महेंद्र प्रताप से भी तो कोई सीख लेनी चाहिए?
Posted on 03 October 2021 by admin
अपनी नई रीजनल पार्टी का गठन कर कैप्टन कांग्रेस की नाक में दम कर सकते हैं। हालांकि उन्हें मनाने के प्रयास अब भी जारी हैं, पर लगता है बात काफी आगे बढ़ चुकी है। कैप्टन को सोनिया गांधी निजी तौर पर पसंद करती हैं, सो पार्टी में असंतुष्ट आवाज़ों की खासी रवानगी के बाद भी कैप्टन को उन्होंने काफी वक्त दिया। पहले खड़गे की अगुवाई में कमेटी गठित की गई, फिर एक और कमेटी बनी, उसके बाद बतौर प्रदेश प्रभारी हरीश रावत की रिपोर्ट आई। मामले की नजाकत को भांपते हुए कैप्टन ने पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिल कर अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी। पर सोनिया कांग्रेस के मान्य परंपराओं के मुताबिक ही चाहती थीं कि जाने वाला सीएम आने वाले सीएम के नाम को प्रस्तावित करे। पीके की रिपोर्ट में दलित सीएम बनाने पर पूरा आग्रह था, सो गांधी परिवार खास कर सोनिया गांधी ने सबसे पहले पंजाब के एक वरिष्ठ दलित नेता शमशेर सिंह दुलो के नाम पर विचार किया। जो प्रदेश अध्यक्ष के अलावा बेअंत सिंह की कैबिनेट में नंबर दो रह चुके हैं। पर राहुल चाहते थे कि विधायकों में से ही कोई मुख्यमंत्री बने, वह भी दलित, सो चरणजीत सिंह चन्नी का नंबर लग गया। सिद्धू को लेकर गांधी परिवार अबतलक सशंकित हो चुका था, वह चाहता है कि सिद्धू को एक दायरे में रखा जाए। सूत्र बताते हैं कि कैप्टन की सबसे ज्यादा नाराज़गी सिद्धू को लेकर थी, यह भी कहा जाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल से मिल कर कैप्टन ने उन्हें एक ‘डॉसियर’ सौंपा है जिसमें सिद्धू का पाकिस्तान प्रेम और उनके इमरान खान से रिश्तों को लेकर कुछ गंभीर खुलासे हैं। वहीं सिद्धू के लोग खुल कर कैप्टन और पाकिस्तानी पत्रकार आरूषा आलम के रिश्तों को लेकर सवाल उठा रहे हैं और ये भी कह रहे हैं कि कौन नहीं जानता कि आरूषा पाकिस्तानी फौज की एक जनरल की बेटी है। वहीं कांग्रेस ने अब भी कैप्टन की पत्नी परणीत कौर से संवाद बना रखा है और उन्हें पार्टी संगठन में महती जिम्मेदारी देने का ऑफर भी दिया है। परणीत कौर ने भी एक बयान देकर साफ किया है कि वह अपने पति के पीछे कांग्रेस छोड़ कर नहीं जाने वाली है। रही बात कैप्टन के आगे की रणनीति की तो वह अपने क्षेत्रीय दल का गठन कर सकते हैं। चूंकि कैप्टन के भाजपा से काफी अच्छे ताल्लुकात हैं और उनके खास विश्वासी मनीष तिवारी के तार आम आदमी पार्टी से बखूबी जुड़े हैं,सो कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब की सभी 117 सीटों पर कैप्टन उतनी मजबूती से चाहें ना लड़ें, जहां आप का उम्मीदवार या फिर भाजपा का उम्मीदवार मजबूती से लड़ रहा हो, कैप्टन उन्हें अंदरखाने से सपोर्ट कर सकते हैं। कई सीटों पर इन दलों से तालमेल कर कैप्टन की पार्टी ‘फ्रेंडली फाइट’ भी कर सकती है। इसके अलावा जिन मजबूत लोगों को कांग्रेस का टिकट नहीं मिलता है, इन असंतुष्टों के लिए भी कैप्टन के द्वार खुले रहेंगे। यूं भी कैप्टन फौज में रह चुके हैं, सो आमने-सामने की जंग उनके मुफीद भी है और उनमें कैप्टन को सिद्दहस्ता भी हासिल है।
Posted on 03 October 2021 by admin
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे भरोसेमंद अधिकारी और उनके प्रधान सचिव अवनीश अवस्थी की गायिका पत्नी पद्मश्री मालिनी अवस्थी की ख्याति तो अब यूपी की सरहदें लांघ रही हैं। लोक गायिका मालिनी का दावा है कि 2005 में सरकारी चैनल दूरदर्शन पर उन्हें एक भजन गाने से सिर्फ इसीलिए रोक दिया गया था कि उस भजन के मर्म में समाहित था कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। सो, अब योगी इस लोक गायिका को मनोनीत कैटेगरी से ऊपरी सदन में भेजना चाहते हैं, इस बाबत उन्होंने पीएम से भी गुहार लगा दी है। वहीं संघ और भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि इस दफे के विधानसभा चुनाव में मालिनी को भाजपा साहिबाबाद विधानसभा से चुनावी मैदान में उतारे।
Posted on 03 October 2021 by admin
जहां एक ओर केंद्र सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी मीडिया से एक यथोचित दूरी बनाए रखने में यकीन रखते हैं, वहीं उन्होंने अपने मंत्रियों को भी निर्देश दे रखे हैं कि वे भी मीडिया से एक फासला बना कर रखें। हां सोशल मीडिया पर जरूर एक्टिव रहें। पर केंद्र सरकार के भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने तो जैसे इस बार सारे रिकार्ड ही तोड़ दिए। वे कोई 250 पत्रकारों के दलबल के साथ कश्मीर पहुंचे। जोजिला टनल का निरीक्षण करने। लगभग 125 पत्रकार दिल्ली से गए थे। 70-75 जम्मू-कश्मीर से थे और कोई 50 विदेशी पत्रकारों का समूह भी वहां मौजूद था। पीयूष गोयल भी जब दुबई एक्सपो में ’इंडिया पैवेलियन’ का उद्घाटन करने गए तो उनके साथ भी 70 पत्रकारों का एक समूह था। अब बात करते हैं नितिन गडकरी के साथ गए पत्रकारों के दल का जिनका खर्चा कथित तौर पर उस निर्माण कंपनी ने उठाया जो इस जोजिला टनल के निर्माण कार्य से जुड़ी है, कहते हैं सिर्फ पत्रकारों की आवभगत पर ही कंपनी को 2 करोड़ से ज्यादा की रकम फूंकनी पड़ी, फिर भी पत्रकार खुश नहीं हुए। पत्रकारों ने दिल्ली से तीन अलग-अलग टोलियों में दिल्ली-श्रीनगर की सुबह 6 बजे वाली उड़ान पकड़ी, पर फ्लाइट में नाश्ते का कोई प्रबंध नहीं था। एयरपोर्ट पर उतरे तो पकौड़े-चाय से पत्रकारों का स्वागत हुआ। उनके रहने का इंतजाम होटल सोनमर्ग में था, होटल पहुंचते-पहुंचते 3-4 बज गए, तब जाकर उन्हें वहां लंच नसीब हुआ। इसके बाद 5.30 बजे एक प्रेस कांफ्रेंस रखी गई थी जिसे ‘नेशनल हाईवे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन’ के एमडी ने संबोधित किया, जो कोई एक घंटे तक चली। इसके बाद किसी अन्य होटल में कॉकटेल और खाने का इंतजाम था। पर तब तक पत्रकारगण इतने थक चुके थे कि आधे तो वापिस अपने होटल के कमरों में लौट गए। जब अगले रोज पत्रकारगण जोजिला टनल पर पहुंचे तो वहां खाने का इंतजाम 200 लोगों के लिए था, पर वहां भीड़ थी 400 लोगों की, सो खाने के लिए धक्का-मुक्की मच गई। पत्रकारों के लिए 3 दिनों का यह आतिथ्य का सफर खासा थकाने वाला रहा। पहले दिल्ली से श्रीनगर, फिर श्रीनगर से जोजिला, फिर जोजिला से श्रीनगर, फिर वहां से दिल्ली। गडकरी ने सचमुच पत्रकारों के लिए दिल्ली दूर कर दी।
Posted on 03 October 2021 by admin
इतिहासकार राघवेंद्र तंवर की एक पुस्तक छप कर आई है ताजा-ताजा जिसे पब्लिकेशन डिविजन ने छापा है, पुस्तक का नाम है ’द् स्टोरी ऑफ इंडियाज पार्टिशन’ यह पुस्तक लीक से हट कर बात करती है और वही बात कहती है जिसे दिल्ली के निजाम पर काबिज बादशाह और उनके अनुचर सुनना चाहते हैं। इस पुस्तक में जिन्ना और नेहरू के असली चेहरे को दिखाने की भरपूर कवायद हुई है। मौजूदा सत्ता की मंशाओं को स्वर देते हुए यह पुस्तक सवाल उठाती है कि हम आजादी के आंदोलन की तो बात करते हैं पर विभाजन की क्यों नहीं करते, जिसमें लाखों बेकसूर लोगों की जानें चली गईं। यह पुस्तक इशारों-इशारों में बात करती है कि क्या नेहरू को सत्ता का लालच था जो वे देश के विभाजन के लिए तैयार हो गए? नेहरू को कई और कड़े सवालों के लिए भी लेखक उन्हें कठघरे में खड़ा करता है। इतिहास को नए सिरे से लिखने और उनके तथ्यों को नया नजरिया देने के लिए इस दक्षिणपंथी रूझान की आलोचना हो सकती है और यह भी कहा जा सकता है कि यह नेहरू को बदनाम करने की एक कवायद है। पर अतीत में वामपंथी रूझानों वाले इतिहासकारों ने भी तो यही सब किया है, कीमत तो पीढ़ियों को चुकानी पड़ती है।
Posted on 03 October 2021 by admin
2017 के पिछले यूपी विधानसभा चुनाव में चाचा शिवपाल ने कई सीटों पर भतीजे अखिलेश और उनकी सपा का खेल बिगाड़ दिया था और इन सीटों पर दबे पांव भाजपा बाजी मार गई थी। अखिलेश ने भी ठान रखा है कि इस बार वे अपने चाचा को जड़ों में मट्ठा डालने से रोक लेंगे। सो, उन्होंने चाचा शिवपाल को सपा कोटे से 7 सीटों का ऑफर दे दिया है। पर शिवपाल 30 सीटों से कम पर राजी नहीं हो रहे। अखिलेश कहते हैं कि ‘अगर आपके पास सचमुच 30 सीटों पर लड़ने लायक गंभीर उम्मीदवार हैं तो आप हमें दे दो, हम उन्हें साइकिल के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतार देंगे।’ पर चाचा हैं कि मान नहीं रहे, रह-रह कर उनका भगवा प्रेम हिलौरे मारने लगता है। वैसे भी योगी सरकार शिवपाल पर खासी मेहरबान हैं, उनका बड़े साइज वाला मंत्रियों का बंगला अबतलक बरकरार रखा गया है, उनकी ’जेड प्लस’ सेक्युरिटी भी पूर्ववत बहाल है। योगी सरकार में उनके काम भी नहीं रूकते, और क्या चाहिए शिवपाल को?
Posted on 03 October 2021 by admin
बागपत से भाजपा सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह की बेटी चारू प्रज्ञा ने तीनों कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों पर अपने विवादित बोल बोले हैं। चारू भाजपा युवा मोर्चा की विधि मामलों की राष्ट्रीय प्रभारी भी हैं, इनकी छोटी बहन ऋचा प्रज्ञा के पति डॉ. विपिन तोड़ा (जो राजस्थान के रहने वाले हैं) गोरखपुर के एसएसपी हैं, उसी गोरखपुर में जहां पुलिस की पिटाई से एक व्यवसायी मनीष गुप्ता की मौत हो गई है, जिस पर प्रदेश में खासा बवाल कट रहा है।
Posted on 03 October 2021 by admin
’तेरी तोहमतों का कुछ इस कदर असर हुआ है
तन्हा था सफर में जिधर चला वह शहर हुआ है’
पंजाब में डंके की चोट पर बाहुबली कैप्टन को बाहर का दरवाजा दिखाने वाले राहुल गांधी सियासत के एक माहिर खिलाड़ी में शुमार हुए हैं, उन्हें नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि इस नए अवतार में राहुल की रणनीति न सिर्फ सियासी नेपथ्य की आहटों से दो-दो हाथ करने की है, बल्कि आने वाले दिनों में उनकी मंशा कुछ बड़े फैसले लेने की है। मसलन अबतलक अपनी पार्टी में अपराजेय समझे जाने वाले भूपेश बघेल और अशोक गहलोत का हश्र भी कैप्टन का होने वाला है। राहुल और उनके खास भरोसेमंदों को बस इस बात का इंतजार है कि पंजाब का उफान शांत हो तो जयपुर और रायपुर की तारीखों के भी रंग रौगन किए जा सके। राहुल से जुड़े एक विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि आरजी ने इस बात को दिल पर ले लिया है कि अपना इस्तीफा कांग्रेस हाईकमान को सौंपने से पहले कैप्टन ने जिन तीन प्रमुख कांग्रेसी नेताओं से बात की थी, वे हैं अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और कमलनाथ। राहुल को इस बात का बखूबी इल्म है कि कैसे महज़ कमलनाथ की हठधर्मिता की वजह से कांग्रेस को मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य से हाथ धोना पड़ गया। अभी पिछले दिनों राहुल ने सचिन पायलट से मिल कर उन्हें राजस्थान चलाने को तैयार रहने को कहा है, संभवतः अशोक गहलोत को बता दिया गया है कि उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के संगठन में कोई महती जिम्मेदारी मिल सकती है। पिछले दिनों दिल्ली आकर बघेल ने अपने समर्थक विधायकों की परेड राहुल के समक्ष करवा दी थी और अपनी गद्दी बचाने में कामयाब रहे थे, पर राहुल को बघेल का यह बिंदासपन किंचित रास नहीं आया। जब बघेल की एक करीबी ओएसडी को पैसे लेते रंगे हाथों पकड़ा गया तो राहुल ने अपने इरादे और मजबूत कर लिए। बघेल को लेकर राहुल के पास लगातार यह शिकायत पहुंच रही है कि बतौर मुख्यमंत्री वे मनमाना निर्णय लेते हैं, उनके ज्यादातर निर्णय में न तो उनके कैबिनेट सहयोगियों की और न ही उनके वरिष्ठ पार्टीजनों की हामी शामिल होती है। राहुल को अब कांग्रेस में अपनी इस हुंकार को मूर्त रूप देना है कि ’आई एम द् बॉस’ सो अगर पार्टी के बड़े क्षत्रपों को पैदल किया जाएगा तो सेनापति का नैतिक बल और मजबूत होगा। इसीलिए रायपुर के सियासी गलियारों में सुगबुगाहटें सिर उठा रही है कि ’बाबा आ रहे हैं!’ बाबा यानी केपीएस सिंहदेव, बघेल के सबसे निकटतम प्रतिद्वंद्वी।
Posted on 03 October 2021 by admin
पीएम मोदी ने काफी पहले ही अपने सबसे ज्यादा भरोसेमंद अमित शाह को यूपी की कमान सौंप दी थी। संगठन कौशल में माहिर शाह के समक्ष यह महती चुनौती है कि वे निरंतरता में दूसरी बार यूपी में भाजपा विजय का फिर से प्रकल्प तैयार करें। सूत्र बताते हैं कि शाह के लिए हर सप्ताह एक जिले के दौरे का प्रारूप भी तैयार हो चुका था, साथ ही शाह यह भी चाहते थे कि उनके खास भरोसेमंद केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी जाए। इसके अलावा शाह यूपी के कई छोटे दलों से या तो भाजपा का चुनावी गठबंधन चाहते थे या उनकी पार्टी का विलय अपनी पार्टी में चाहते थे। पर ये हो न सका, क्योंकि यूपी के भावी राजनीति को देखने का योगी का नजरिया किंचित दीगर है। शाह ने काफी पहले से निषाद पार्टी के संजय निषाद के साथ मिल कर तय कर लिया था कि निषादों की यह पार्टी भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी, इसके एवज में संजय निषाद को भाजपा अपने कोटे से एमएलसी बना देगी। पर योगी को यह आइडिया पसंद नहीं आ रहा था, सो मामला टलता रहा और एक दिन संजय निषाद का स्टिंग ऑपरेशन (चुनाव जीतने के लिए विरोधियों की हत्या की बात) भी सामने आ गया। लिहाजा, मामला और लटक गया। पर पीएम मोदी ने अपनी अमेरिकी यात्रा से पूर्व 4 एमएलसी के नाम पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी, जिसमें संजय निषाद का नाम भी शामिल था। अब शाह संघ के शीर्ष नेताओं से मिल कर यूपी चुनावों की पूर्वबेला में इस बात को आगे बढ़ा रहे हैं कि चुनावी पोस्टर पर योगी के अलावा 5-6 प्रदेश के अन्य भाजपा नेताओं के चेहरों को भी चस्पां किया जाए यानी चुनाव सिर्फ योगी के चेहरे पर न लड़ा जाए। इस सुविचारित इरादे की काट के लिए योगी के मन में यकीनन कुछ न कुछ तो चल ही रहा होगा।
Posted on 03 October 2021 by admin
क्या आपको महाराष्ट्र की कांग्रेसी नेत्री रजनी पाटिल याद हैं, जब पिछली बार वह राज्यसभा में थीं तो गलती से अपना पर्स घर पर भूल आई थीं तब सोनिया गांधी ने इन्हें अपनी गाड़ी से पार्लियामेंट से उनके घर छोड़ा था। इस दफे महाराष्ट्र की इस इकलौती राज्यसभा सीट पर कांग्रेस के कई हैवीवेट नेताओं ने अपनी नज़रें गड़ा रखी थीं मसलन मुकुल वासनिक। कहते हैं गांधी परिवार मुकुल से इन दिनों खफा-खफा चल रहा है, सो पिछली बार भी उनका राज्यसभा के लिए नंबर नहीं लगा था, इस बार भी उनका पत्ता कट गया। एक और नाम जो चर्चा में था, वह है सुशील कुमार शिंदे का, पर इनके नाम को शरद पवार ने अटका दिया। एक और नाम विदर्भ चंद्रपुर के एक प्रभावशाली ट्रेड यूनियन लीडर नरेश पुगलिया का था, महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले भी लाइन में थे। मुंबई की पूर्व मेयर और महाराष्ट्र वीमेन कमीशन की पूर्व अध्यक्ष निर्मला सावंत का नाम भी खूब चला। स्वयं राहुल गांधी पिछले वर्ष कोरोना के शिकार हो गए पार्टी के युवा सांसद राजीव सातव की पत्नी को टिकट देना चाहते थे। पर अकेले कांग्रेस के हाथ में कुछ नहीं था। फैसला एनसीपी और शिवसेना को शामिल किए बिना नहीं लिया जा सकता था। रजनी पाटिल को पवार का मूक समर्थन हासिल था, सो वह बाजी मार गईं।