हजारे की हजार चिंताएं |
May 08 2011 |
चिंतन बैठकों से बाहर निकल समय, काल व बदलते हालात से समन्वय बिठाने के लिए संघ का शीर्ष नेतृत्व चिंतित है, उसकी असली चिंता इस बात को लेकर है कि नई सोच की नई पीढ़ी के लिए संघ और गैर-प्रसांगिक क्यों होता जा रहा है? पिछले दिनों अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को जिस तरह युवा भारत का समर्थन हासिल हुआ उसके परिप्रेक्ष्य में संघ ने अपने अनुषांगिक संगठनों से कहा है कि संघ से जुड़े लोग व संस्थाएं ज्यादा से ज्यादा तादाद में अन्ना की मुहिम में कदम से कदम मिलाए और यहां आकर अहम दायित्वों का निर्वहन भी करें। संघ को लगता है कि अगर दक्षिणपंथी ताकतें ऐसा करने में विफल रहीं तो नक्सली आंदोलनों से सुहानुभूति रखने वाले स्वामी अग्निवेश या मेधा पाटेकर जैसे लोग इसे अतिक्रमित कर लेंगे या फिर कांग्रेस से जुड़े हर्ष मंदर या अरुणा रॉय जैसे लोग इसका फायदा उठा लेंगे यानी संघ विरोधी लोगों के हाथों की कठपुतली बन सकते हैं अन्ना, और वैसे भी अन्ना इन दिनों गोविंदाचार्य, बाबा रामदेव जैसे हिंदुत्ववादी विचारधारा के पोषक लोगों से पर्याप्त दूरी बनाने की रणनीति बुनने में जुटे हैं। अन्ना ने यह भी साफ कर दिया है कि रामदेव के प्रस्तावित अनशन से उनका कोई लेना-देना नहीं। यानी साफ है कि रामदेव सरीखे लोगों की लोकप्रियता का फायदा उठाने से अन्ना को गुरेज नहीं, पर वे किसी भी कीमत पर खुद को इस्तेमाल नहीं होने देंगे। अन्ना से बड़ा राजनैतिज्ञ कौन है? |
Feedback |