स्वराज का मैनेजमेंट कौशल

December 11 2011


सुषमा स्वराज ने अपने सियासी चातुर्य कौशल से विपक्षी दलों, यहां तक की वामपंथियों का दिल जीतने में भी कामयाबी पा ली। यह नेता प्रतिपक्ष का ही खालिस उपक्रम था कि उन्होंने विपक्षी एका की तान को बरकरार रखा। वामपंथी दल महंगाई पर चर्चा पहले चाहते थे और एफडीआई पर बाद में, सुषमा मान गईं। उन्होंने महंगाई पर डिबेट के लिए गुरूवार का दिन चुना और एफडीआई पर संसद में सोमवार का दिन बहस के लिए रखा। नेता प्रतिपक्ष ने लगभग तय कर रखा था कि किसी भी कीमत पर सदन में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाना है, चाहे सरकार अल्पमत में ही क्यों न हो। सुषमा को बखूबी इस बात का इल्म था कि अगर एफडीआई पर वोटिंग की नौबत भी आई तो ममता विपक्ष का साथ नहीं देंगी। बसपा-सपा सौदा कर लेंगे, और वामपंथियों की राजनीतिक मजबूरी है कि वे भाजपा के ‘मोशन’ पर वोट नहीं करेंगे। सो, मैडम स्वराज ने तय कर रखा था कि अगर बात शक्ति परीक्षण पर ही आती है तो तस्वीर तो स्थगन प्रस्ताव पर भी साफ हो सकती है।

 
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