सुरेश सोनी की जगह डा. कृष्ण गोपाल हो सकते हैं संघ के नए भाजपा प्रभारी

September 02 2013


संघ और भाजपा के दरम्यान नए रिश्तों की सुगबुगाहट का दौर जारी है, इस कड़ी में एक बड़े बदलाव के साफ संकेत मिलने लगे हैं। संघ की ओर से पिछले कई वर्षों से भाजपा की कमान संभाल रहे और उसकी बकायदा सवारी गांठ रहे इसके संयुक्त सचिव सुरेश सोनी की छुट्टïी होने के पूरे आसार बन गए हैं। अगर सब कुछ संघ प्रमुख भागवत के तय फॉर्मूले के मुताबिक चला तो भागवत के बेहद करीबी और ब्राह्मïण नेताओं को पार्टी व संगठन में आगे बढ़ाने की कूवत रखने वाले संघ के सहसरकार्यवाह और संयुक्त महासचिव डा. कृष्ण गोपाल सोनी की जगह ले सकते हैं। अब 29 अगस्त को जब संघ प्रमुख भागवत अपने तीन दिनों के प्रवास पर दिल्ली पधारे थे और भाजपा के प्रमुख नेताओं से मिल रहे थे तो उन तमाम मुलाकातों में कृष्ण गोपाल की सबसे महती भागीदारी थी। और भागवत भी जाने-अनजाने गोपाल को संघ के अगले प्वाइंट मैन की तरह पेश कर रहे थे। सनद रहे कि सुरेश सोनी को हटाने की मांग लंबे समय से भाजपा के वयोवृद्ध नेता अडवानी और उनके कैंप के अन्य नेतागण करते आए हैं। भाजपा के गोवा अधिवेशन में मोदी की ताजपोशी के दौरान रूठे अडवानी को जब भागवत मनाने का प्रयत्न कर रहे थे तो अडवानी की सर्वप्रमुख शत्र्त ही यही थी कि संघ सुरेश सोनी की जगह किसी और को भाजपा काप्रभार सौंपे। इस विचार को एक तरह से भागवत ने अपनी ओर से हरी झंडी दे दी थी। पर पिछले कुछ दिनों में सुरेश सोनी जिस तरह से एक से एक नए आरोपों से घिरते जा रहे हैं, उनकी रूखसती की धारणा और पुख्ता होती जा रही है। अभी भोपाल के दो बिजनेस घरानों ‘एसके ग्रुप’ के सुधीर शर्मा और ‘डीबीएल ग्रुप’ के दिलीप सूर्यवंशी के यहां आयकर विभाग का छापा पड़ा तो उन छापों में सुधीर शर्मा की एक डायरी भी बरामद हो गई जिसमें इस बात का जिक्र था कि वे किन-किन नेताओं की यात्राओं का भुगतान करते हैं। भाजपा की ओर से प्रभात झा, लक्ष्मीकांत शर्मा के अलावा सुरेश सोनी के नाम के कागजात भी निकल आए। इस बात को लेकर पार्टी व संघ में खासी खलबली मची है। भाजपा में सोनी विरोधी गुट इसे एक उपयुक्त मौका मानता है कि उन्हें इसी वक्त बाहर का दरवाज़ा दिखाया जाए।
पर भाजपा नेताओं की एक बड़ी जमात मसलन, राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी, अरूण जेटली सरीखे नेता नहीं चाहते कि ऐन चुनाव के वक्त वह भी अडवानी कैंप के दबाव में सोनी को हटाया जाए। इससे कैडर में अच्छा संकेत नहीं जाएगा। दरअसल, भाजपा के कई गैर ब्राह्मïण नेता डा. कृष्ण गोपाल की ‘प्रो-ब्राह्मïण इमेज’ से घबराते हैं। मूलत: यूपी के मथुरा के रहने वाले कृष्ण गोपाल ने पर्यावरण विज्ञान में आगरा विश्वविद्यालय से मास्टर्स की डिग्री हासिल कर रखी है। इसके बाद उन्होंने ‘कांउसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडसट्रियल रिसर्च’ से डाक्टरेट भी कर रखी है। संघ के क्षेत्रीय प्रचाारक के तौर पर वे असम और मिजोरम जैसे उत्तर पूर्व राज्यों में 9 साल का वक्त गुजार चुके हैं। सो, उनके अनुभव और कार्यक्षमता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता। फिर भी मोदी व राजनाथ यह तर्क दे रहे हैं कि अगर कृष्ण गोपाल को सोनी की जगह लाना भी है तो ऐसा 2014 के लोकसभा चुनाव संपन्न हो जाने के बाद होना चाहिए। पर ना तो भागवत और ना ही अडवानी कैंप इतने इंतजार के मूड में है। मोहन भागवत के ‘ब्ल्यू आइड ब्याय’ नितिन गडकरी और सोनी में भी छत्तीस का आंकड़ा है। इन दोनों के संबंध तब बिगड़े थे जब अपने अघ्यक्षीय कार्यकाल में गडकरी ने सोनी के सबसे चहेते प्रभात झा को मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद से हटा दिया था। ऐसा गडकरी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कहने पर किया था, जिनके पास झा के भ्रघ्टाचार के बारे में तमाम तरह की शिकायतें थीं। सो, गडकरी भी गाहे-बगाहे भागवत पर यह दबाव बना रहे हैं कि जितनी भी जल्दी हो सोनी को चलता किया जाए तभी संघ और भाजपा में एक अच्छा सामंजस्य कायम हो पाएगा। क्योंकि इस जुलाई माह में संघ के प्रांत प्रचारकों की महाराष्टï्र के अमरावती में जो बैठक हुई थी उसमें संघ की तरफ से अपने प्रचारकों को आदेश दिया गया था कि आनेवाले सभी चुनावों में संघ व भाजपा कार्यकत्र्ताओं के बीच अच्छा तालमेल दिखना चाहिए। अब इसी कथन को जमीन पर उतारने की बारी है। सो, देखना है कि सोनी कब तक खैर मनाते हैं।

 
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