सवालों के दीप व संदीप

September 18 2011


कांग्रेसी हलकों में अब यह सवाल एक ‘यक्ष प्रश्न’ बनकर मंडरा रहा है कि और पार्टी की कितनी फजीहत करवाएंगे संदीप दीक्षित। अन्ना मुद्दे पर संसद में बोलते हुए वे राहुल गांधी और उनकी एक दिन पूर्व दी गई स्पीच का जिक्र करना भूल गए। कई मायनों में उन्हें दिल्ली का ‘डिफेक्टो सीएम’ भी कहा जाता है, क्योंकि वे कथित तौर पर न सिर्फ दिल्ली सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं का ट्रैक रखते हैं अपितु इन योजनाओं से जुड़े अनुदान एनजीओ को देने-दिलवाने में भी उनकी एक महती भूमिका होती है। किरण बेदी व अरविंद केजरीवाल के संपर्क में भी वे कुछ इन्हीं वजहों से आए। कहा तो यह भी जाता है कि सोनिया-विरोध का अलख जगाने वाले कई भाजपा नेताओं से भी उनकी गहरी छनती है। ताजा मामला भोपाल एक्सप्रेस में गलती से रह गया नोटों भरा सूटकेस का है, दीक्षित दावा करते हैं कि भले ही यह बैग उनके एसी फर्स्ट क्लास कूपे में था, पर था यह उनके एक मित्र माथुर का। सवाल उठता है कि अगर माथुर वाकई दीक्षित के इतने जिगरी यार हैं तो वे उसी टे्रन के सेकंड एसी में बतौर उनके अटेंडेंट क्यों सफर कर रहे थे? क्या इन रुपयों पर कॉमनवेल्थ गेम्स की छाया मंडरा रही थी? वैसे भी भोपाल से दीक्षित का नजदीकी रिश्ता है, वहां उनकी एनजीओ काम करती है, और माना जाता है कि भोपाल व उसके आस-पास उन्होंने पिछले वर्ष प्रोपर्टी में खासा निवेश भी किया हुआ है। सो एक ऐसे देश में जहां करोड़ों लोग एक जून की रोटी को मुहताज रह जाते हैं, ऐसे में किसी जन प्रतिनिधि या उनके नजदीकी मित्रों का रुपयों भरा बैग ट्रेन में ही छूट जाए तो इससे उनकी रफ्तार को क्या फर्क पड़ता है?

 
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