वंस ऑपन ए टेलिकॉम

December 21 2010


टेलिकॉम सेक्टर में पहले ‘फिक्सड लाइसेंस फी’ थी, इसमें लाइसेंस फी के नाम पर प्राइवेट टेलिकॉम कंपनियों को सरकार को करोड़ों का भुगतान करना पड़ता था, तो कंपनियों ने सबसे पहले तत्कालीन संचार मंत्री बूटा सिंह पर दबाव बनाया कि सरकार एक माइग्रेशन पैकेज बना दे और फिक्सड लाइसेंस फी की जगह सरकार ‘रेवेन्यू शेयरिंग बेसिस’ का मॉडल बना दे इसके लिए कंपनियों की ओर से खासा प्रलोभन था, सो बूटा इसके लिए तैयार हो गए, पर उनके खिलाफ केस रजिस्टर हुआ तो उनका इस्तीफा हो गया, फिर आया एनडीए का शासनकाल सबसे पहले सुषमा स्वराज 22 अगस्त 1998 से 12 अक्तूबर 1998 तक 1 महीना 20 दिन के लिए टेलिकॉम मंत्री बनी, पर उन्होंने प्राइवेट कंपनियों के इस प्रपोजल को मानने से मना कर दिया, तो सुषमा को मंत्री पद से हटा कर दिल्ली का सीएम बना दिया गया, फिर जगमोहन आए, उन्हें भी 400 करोड़ का प्रलोभन मिला पर वे नहीं माने, तो उन्हें लॉबिस्टों ने हटवा कर उनकी जगह प्रमोद महाजन को इस विभाग का मंत्री बनवा दिया। महाजन मान गए और टेलिकॉम कंपनियों की चांदी हो गई,अंबानी के हिसाब से दूरसंचार की नीतियां बनने लगी, जब महाजन की काफी शिकायतें आने लगी तो अटल-अडवानी ने उन्हें हटा दिया, 2003 में सुषमा को फिर इस विभाग का ऑफर मिला तो उन्होंने मना कर दिया और हेल्थ में चली गईं, फिर दामादजी के सौजन्य से इस मंत्रालय में अरुण शौरी आए और उन्होंने अपने पूर्ववर्ती महाजन की नीतियों को ही आगे बढ़ाने का काम किया। फिर मारन व राजा का नंबर आया। टाटा राजा को चाहते थे, बाकी के खिलाड़ी मारन को। यानी जितने भी टेप आए हैं उसमें मारन को रोकने की दास्तां कैद है। और जैसा कि कांग्रेस कह रही है कि जांच एनडीए शासनकाल से कराई जाएगी तो फिर महाजन और शौरी पर आंच आ सकती है। और राजा का राज अब कोई राज तो रह नहीं गया है।

 
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