लोगों के मेले में जॉर्ज अकेले

January 13 2010


उदासी, तन्हाई के अजीबो गरीब सफर के हमसफर बन गए हैं जॉर्ज फर्नांडीस, कभी जुझारू समाजवाद से वास्ता था, पर जिंदगी के भी खेल अजीब हैं, उम्र के इस पड़ाव पर आकर बच्चों के मानिंद हो गए हैं जॉर्ज, उनकी सेवा में मुस्तैदी से जुटे बस तीन नौकरों के भरोसे अब उनकी जिंदगी की गाड़ी चल रही है। कहते हैं उन्हें सब कुछ भूल जाने वाली ‘अल्जाइमर’ बीमारी हो गई, उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता, कल तक जो लोग उनके खासमखास थे आज उनकी पहचान भी गडमगड हो गई है, पर पिछले कुछ दिनों से जॉर्ज की जिंदगी में तनिक रौनक आ गई है, उनकी किसी जमीन का सरकारी मुआवजा मिला है कोई 12 करोड़ रुपए जो उनके अकाउंट में जमा हो गया है। जॉर्ज को करीब से जानने वाले उनके एक पुराने मित्र बताते हैं कि जॉर्ज ने अब तलक अपनी कोई वसीयत नहीं बनवाई है। सो कई और लोग भी लौट आए हैं उनकी जिंदगी में, जो कभी उनसे दूर चले गए थे, जैसे उनकी पत्नी लैला फर्नांडीस जब उन्हें छोड़ गई तो फिर से लैला कबीर हो गई थीं, पर इन दिनों वे अपने आपको मिसेज जॉर्ज कहलाना ज्यादा पसंद करती हैं, लैला भी अपने पुत्र के साथ दिन में एक दफे जरूर आ जाती हैं जॉर्ज से मिलने। जया जेतली नियम से हर दिन दो घंटे के लिए आती हैं। सबकी नजर बराबर जॉर्ज के अंगूठे पर होती है कि कोई किसी वसीयत पर जॉर्ज का अंगूठा न लगवा ले, पर जॉर्ज हैं कि इन बातों से बेखबर सबको अंगूठा दिखा रहे हैं। बेहद भोलेपन से।

 
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