लाल से मलाल

October 05 2009


हर छोटी-बड़ी बात पर यूं अचानक लाल-पीली हो जाने वाली ममता दीदी को लाल रंग से खासी एलर्जी है। और हो भी क्यों नहीं वामपंथियों के लालगढ़ को ध्वस्त करने की उनकी मंशा रोज-ब-रोज और प्रखर हुई जाती है। पिछले दिनों जब दीदी को कोलकाता से अपनी महत्वाकांक्षी रेलगाड़ी ‘दुरंतो’ को हरी झंडी दिखानी थी तो उस मौके पर रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अतिशय उत्साह में आकर कह दिया कि यह रेलवे के लिए ‘रेड लेटर्स डे’ यानी अति महत्व का दिन है, पर तुरंत ही उस अधिकारी को अपनी भूल का अहसास हो गया और अपनी गलती सुधारते हुए उस अधिकारी ने फौरन कहा यह तो ‘ग्रीन लेटर्स डे’ के माफिक है। हरा रंग जैसाकि सबको मालूम है कि यह दीदी के राजनीतिक दल का अधिकारिक रंग है। यहां तक कि नई रेलगाड़ी ‘दुरंतो’ का शृंगार भी हरे रंग से किया गया था और ममता के मंत्रालय के जो बड़े विज्ञापन अखबार-पत्रिकाओं को रिलीज होते हैं उसमें भी हरे रंग का प्रचुरता से इस्तेमाल होता है। सो, दीदी अगर कायदे से पश्चिम बंगाल में सत्ता में आ गई तो न सिर्फ राज्य के एजेंडे और मंशा में अपेक्षित बदलाव आएगा अपितु बंगाल में लाल के लिए हरा काल बनकर आएगा यानी खूब पुताई होगी सड़कों, खंभों और इरादों की और शायद बदले वक्त और बदली मंशाओं के तहत कैलेंडर में छुट्टी को चिन्हित करने वाले लाल रंग में डूबे शनिवार और रविवार पर भी सुर्ख हरे रंग की पुताई हो जाए, सचमुच दीदी के जख्म अब भी उतने हरे हैं।

 
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