मैं भी अण्णा, तू भी अण्णा |
August 21 2011 |
मुख्तसर 74 साल के एक बूढ़े आदमी के अनोखे संकल्प व बला की नैतिक ताकत ने बापू की याद दिला दी है, सोते हिंदुस्तानियों को जगाने के लिए हमारे सिरहाने में दशकों से पसरी उस स्याह रात के चेहरे पर आसमान के कंगूरे से उतार कर दहकते सूरज को रख दिया है, जिससे कि नई फिजां में नया उजाला तमाम बस्ती सजा रहा है…कि फरिश्ता निकला है रोशनी का हरेक रास्ता चमक रहा है, ये वक्त वो है जमीं का हर जर्रां मां के दिल सा धड़क रहा है…अण्णामय होते इस नए भारत के जज्बे को सलाम! सत्ता पक्ष की घिग्गी बंध गई है, मूक हिंदुस्तान को अभिव्यक्ति का नया हथियार मिल गया है! ऐसे में जब दिल्ली के एक बड़े अखबार समूह का संपादक जब यह बताता है कि ‘वह अन्ना क्यों नहीं है,’ इस संपादक का मानना है कि ‘यह विरोध आंदोलन है, कोई क्रांति नहीं, इसकी भावनाओं में मध्य वर्ग का पाखंड है’ तो मालिकों की ठकुरसुहाती भावनाएं ही प्रत्यंचा चढ़ती नजर आती है, मालिकों पर सरकार व कांग्रेस की कई अनुकंपाएं रही है, मालिकों का राज्यसभा में आना-जाना लगा रहा है। अखबार मालिकों के इतर कई और बिजनेस हैं, मसलन रसायन की एक बड़ी फैक्ट्री है, जहां एक खास तरह का रसायन तैयार होता है जो अफीम साफ करने के काम आता है। इस रसायन पर सरकार का नियंत्रण है। सो, फैक्ट्री से निकलते ही रसायन लदे ट्रकों का फाइलों में यदा-कदा एक्सीडेंट होता ही रहता है, रसायन खुले बाजार में बिक सकते हैं, पर जनभावनाएं नहीं। किसी के बहकावे में मत आइए, हर हिंदुस्तानी के अंदर एक अण्णा पहले से मौजूद है, उसे सांस लेने दीजिए, अगर आप चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र जिंदा रहे। |
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