बोलना जरूरी है

March 29 2010


जब से सुषमा स्वराज ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा संभाला है तब से भाजपा की सदन में एक ‘प्रो.एक्टिव’ इमेज मुखर हुई है, भाजपा के सीनियर नेता ज्यादा से ज्यादा सदन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराना चाहते हैं, भाजपा के लोकसभा सांसदों की एक ऐसी ही बैठक में जब यह सवाल उठा कि पर्यावरण विधेयक पर कौन बोलेगा तो यूपी के आंवला से सांसद मेनका गांधी ने हाथ उठाया कि चूंकि वे पहले से पर्यावरण जैसे मुद्दों को संसद व संसद से बाहर उठाती रही हैं चुनांचे वो इस मुद्दे पर बोलना चाहेंगी। इस पर सुषमा ने कहा कि वह चाहती है कि कर्नाटक के सांसद अनंत हेगड़े इस पर बोले चूंकि वे सीनियर हैं और चार टर्म के एमपी हैं, मेनका ने सवाल उठाया कि वे तो सात टर्म की एमपी हैं, तो ज्यादा सीनियर कौन हुआ? जब मंगलवार को अडवानी के घर पर भाजपा सांसदों की बैठक हुई तो उस बैठक में मेनका ने प्रमुखता से सुझाव दिया कि सांसदों की पृष्ठभूमि और उनकी योग्यता के आधार पर ही उन्हें संसद में बोलने का मौका मिले यानी अगर कोई डॉक्टर है तो वह मेडिकल संबंधी मसलों पर बोले। कोई खेती की पृष्ठभूमि से आता है तो वह कृषि संबंधी मसलों पर बोले। मजे की बात तो यह है कि ‘मेनका फार्मूले’ पर मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा सरीखे सीनियर नेताओं ने भी तत्क्षण अपनी सहमति की मुहर लगा दी, अडवानी भी जाहिरा तौर पर इस फार्मूले के पक्ष में दिखे, पर किंचित यह सुषमा को काफी नागवार गुजरा और वो नाराज होकर बैठक से बाहर चली गईं। महिला आरक्षण से पूर्व की टंकार है यह।

 
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