बाला साहेब की बालहठ

February 10 2010


भाजपा-शिवसेना गठबंधन बस टूटने की कगार पर है, अंतिम सांसे ले रही है एक पुरानी सियासी दोस्ती। भाजपा के अधिकांश सीनियर नेताओं को यह दोस्ती अब एक बोझ सी लग रही है और सिर पर हैं बिहार के विधानसभा चुनाव। यानी जब गठबंधन का एक साथी बिहारियों को जी भर गरिया रहा हो तो भाजपा किस मुंह से बिहारियों के दिल में कमल का प्रस्फुटन कराए, सो नए अध्यक्ष की राय पर यह विचार पुता हुआ कि इस गठबंधन के बोझ को सिर पर लादे बिहार चुनाव में नहीं जाया जा सकता, वैसे भी नए भाजपा अध्यक्ष से कभी ठाकरे परिवार की दोस्ती नहीं रही है, सेना से गठबंधन के भाजपा में बस एक ही पैरोकार हैं वह हैं गोपीनाथ मुंडे। पर अब मुंडे भी समझ चुके हैं कि ठाकरे परिवार की और ज्यादा वकालत भगवा राजनीति में उनकी संभावनाओं पर ग्रहण लगा सकता है, €योंकि बाल ठाकरे जैसी कि उनकी विडंबना रही है कि वे किसी का सामना तो कर नहीं सकते हां उन्हें अपने ‘सामना’ अखबार में जरूर ललकार सकते हैं, और अबकि बालहठ में आकर बाल साहब ने संघ को ही ललकार दिया है तो स्वाद तो उन्हें चखना ही पड़ेगा। चाहे देर से ही सही अपमान व नसीहत का।

 
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