प्रणब के गुस्से से बचाए रब

February 07 2010


शर्म, गुस्से व दर्प का रंग एक सा होता है सदैव-सुर्खलाल, यूं तो प्रणबदा और लाल रंगियों (वामपंथियों) की दोस्ती सियासी अंत:पुर को सदैव लुभाती रही है, पर निपट कांग्रेसी होकर भी प्रणबदा का यूं गुस्से में अचानक लाल-पीला हो जाना तो अब जैसे रोज की बात हो गई है, खरामां-खरामां जैसे यह उनकी आदतों में शुमार हो गया है, कैबिनेट की पिछली बैठक में दादा अपने दो काबिना मंत्रियों पर कुछ इस कदर भड़क गए कि एकबारगी प्रधानमंत्री भी भौंचक रह गए। स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद बस इतना चाहते थे कि एम्स के डॉक्टरों का पलायन रोकने के लिए उन्हें जरूरी आकर्षक पैकेज मुहैया कराया जाए, ताकि प्राइवेट अस्पतालों के आकर्षक प्रलोभनों की गिरफ्त में आने से उन्हें बचाया जा सके। इस पर प्रणबदा गुस्से में इस कदर लाल हो गए कि बस कुछ पूछिए मत, कैबिनेट की उसी बैठक में प्रपोजल तो केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने भी रखा था कि ग्रामीण इलाकों के विश्वविद्यालयों को अलग से ‘इंसेटिव’ दिया जाए, इस पर दादा फिर से भड़क गए और भड़के भी क्यों नहीं देश के खजाने की कुंजी है उनके पास, जहां कहीं पैसा जाएगा तो दर्द तो होगा ही।

 
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