नीतीश की नीयत

June 28 2010


नीतीश कुमार का दंभ है कि टूटता नहीं, और भाजपा की जाने क्या मजबूरी है कि लाख उलाहने सहने के बावजूद भी वह नीतीश के इशारों पर नाचने को हरवक्त तैयार रहती है। कहीं ऐसा भाजपा के चंद बड़े नेताओं का नीतीश के साथ लाभ-हानि वाला कोई निजी गठजोड़ तो नहीं? हालिया मोदी मुद्दे के बाद भी भगवा पार्टी साफ तौर पर दो खेमों में बंटी नजर आई, दिल्ली में बैठे मोदी-विरोधी तमाम नेताओं का आग्रह बस इसी बात को लेकर था कि चाहे जो हो नीतीश-भाजपा का गठजोड़ टूटना नहीं चाहिए, इस राय के अडवानी, सुषमा, जेतली सभी बड़े नेतागण थे। पर जैसा कि नया मुल्ला प्याज बहुत खाता है, सो खुद को सेक्युलर दिखाने की रौ में नीतीश कहीं आगे तक जा सकते हैं, अभी नीतीश ने अपने एक पसंदीदा अखबार समूह से बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एक जनमत सर्वेक्षण करवाया है, जिसके मुताबिक अगर नीतीश भाजपा के बगैर अकेले चुनाव में जाते हैं तो उनकी पार्टी को कहीं ज्यादा सीटें हासिल हो सकती है, जाहिर है यह सर्वे और मंतव्य दोनों ही प्रायोजित हो सकते हैं, मगर नीतीश की नीयत? उनसे जुड़े सूत्र बताते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव से डेढ़ माह पूर्व नीतीश भाजपा को अलविदा कह ‘एकला चलो’ के मार्ग पर चल सकते हैं, तब तक वे मोदी के बहाने भाजपा का अच्छा खासा जुलूस निकाल चुके होंगे, मोदी और नीतीश में चाहे जितना भी विरोधाभास हो एक समानता जरूर है, दोनों ने ही प्रधानमंत्री पद का मुगालता पाला हुआ है, जब महत्वाकांक्षाएं इतनी उद्दात और विषम होती हैं तो ऐसे में सियासी परिधियां अक्सरां छोटी पड़ जाया करती हैं।

 
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