चिंदी-चिंदी है हिंदी

October 20 2009


यूपीए सरकार के आंगन में बिचारी हिंदी अपेक्षाओं के लाख दंश झेलने को विवश है। एक नीतिगत निर्णय के तहत् विदेश मंत्रालय को यह कार्य सौंपा गया था कि वह संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को सातवीं आधिकारिक भाषा बनाने के लिए विश्वव्यापी लॉबिंग करे और इसके लिए सरकार ने कोई सौ करोड़ रुपयों के भारी-भरकम बजट का प्रावधान भी रखा था। इस प्रोजेक्ट के तहत विदेश मंत्रालय को कोई 50 देशों में हिंदी के लिए लॉबिंग करनी थी, पर हिंदी-प्रेमी लोग यह जानकर बेहद परेशान हैं कि इस योजना का अब तलक श्रीगणेश भी नहीं हो पाया है और न ही इस मंत्रालय के दो अहिंदी भाषी मंत्रियों की इस योजना में कोई खास दिलचस्पी है। केंद्रीय मंत्री एस.एम.कृष्णा की मातृभाषा कन्नड़ है, वे कर्नाटक से आते हैं, शशि थुरूर मलयाली हैं, केरल से आते हैं, ऐसे में बिचारी हिंदी के लिए कौन क्या लेकर आएगा? सवाल यही तो अहम है, पर इसकी शिकायत कौन लेकर जाए मैडम इतालवी के पास।

 
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