गम है कि गृह मंत्री हैं चिदंबरम

October 06 2010


‘चौदहवें चांद को फिर आग लगी है, देखो फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा …राख हो जाएगा तो कल फिर से अमावस होगी (गुलजार)’ क्यों खेलते हैं सियासतदां ऐसे खेल? क्यों भड़काते हैं जन भावनाएं…और आम जनता के लरजते दर्दों-गम पर सेंकते हैं अपनी सत्ता की रोटियां? इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का इतना बड़ा फैसला आया, और लोगों ने इसे सिर-माथे लगाया, पर मुलायम, लालू, कोई रिटायर्ड जज सच्चर, कोई कांग्रेस प्रायोजित न्यूज चैनल और यहां तक कि देश के गृह मंत्री भी इन शांत लहरों में पत्थर उछाल रहे हैं। चिदंबरम कहते हैं ‘यह निर्णय नहीं एक ‘रेफरेंस’ भर है, तीन महीने बाद सुप्रीम कोर्ट स्टे दे देगा और फिर मामला सालों यूं ही कानूनी दांव-पेंच में उलझा रहेगा।’ क्यों स्टे देगा सुप्रीम कोर्ट वकील मंत्री जी? इस फैसले में शामिल सुधीर अग्रवाल युवा सोच के युवा जज हैं, जिनका आज तक कोई भी फैसला सुप्रीम कोर्ट में कभी ‘रिवर्ट’ नहीं हुआ है, वे साइंस के स्टूडेंट रहे हैं सो, उनकी सोच भी उतनी ही लॉजिकल और मॉडर्न है और अंग्रेजी भी वे चिदंबरम से कहीं ज्यादा जानते हैं। जस्टिस खान भी साइंस के स्टूडेंट रहे हैं, और उनकी इतिहास में गहरी अभिरूचि रही है, उन्होंने कई किताबें भी लिखी है, लिहाजा उन्होंने अपने निर्णय में चार्ल्स डार्विन का भी उल्लेख किया है। जस्टिस शर्मा का व्यक्तित्व तो सबसे निराला है, वे आस्तिक हैं, बैचलर हैं, और इन सबसे दीगर एक जाने-माने ‘फिलॉनथ्रॉफिस्ट’ हैं, यानी वे अपना नाम गुप्त रख कर अपनी सारी कमाई सामाजिक कार्यों में लगा देते हैं, उन्हें हिंदी बोलना और जमीनी लोग पसंद हैं, और उनके कई निर्णय कालांतर में मील का पत्थर साबित हुए हैं, सो, माननीय गृह मंत्री जी कुछ बोलने से पहले सोचिए और यह भी सोचिए कि जिस कुर्सी पर आप विराजमान हैं, वह सियासी राग-द्वेष से इतर है, सो आपकी भावनाएं भी उसी अनुरूप होनी चाहिए।

 
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