ओबामा से आगे राहुल

April 04 2010


चापलूसी और चापलूसों की संस्कृति से तौबा करने वाले कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी भी किंचित आत्म प्रवंचना और आत्मश्लाघा के कुकरमुत्तों में उलझ ही गए आखिर, वरना क्या जरूरत थी उन्हें चिंतक, अर्थशास्त्री व रिस्क इंजीनियर तथा ‘द ब्लैक स्वॉन’ के लेखक नसीम निकोलस तालिब को इतना भाव देने की। नई दिल्ली के एक कांक्लेव में राहुल यूं अचानक जब पधारे तो आशा के विपरीत सीधे तालिब के ही बगलगीर हुए, कार्यक्रम के अधबीच वे अपने साथ तालिब को लेकर पास के ही एंबेसडर होटल के एक मशहूर रेस्तरां में पहुंचे, जहां तालिब ने भरपेट खाना खाया, पर राहुल ने इस अमरीकन आर्थोडॉक्स अर्थशास्त्री से बस ज्ञान की घुट्टी ही लगाई, इतना ही नहीं लंच के बाद राहुल तालिब को लेकर फिर वापिस उसी कांक्लेव में पहुंचे और लगातार तीन घंटों तक ‘फेवीकोल’ के मजबूत जोड़ की भांति तालिब से ही चिपके रहे। आखिर ऐसा क्या जादू कर दिया था तालिब ने? उसी कांक्लेव में पूर्व में बोलते हुए तालिब ने राहुल गांधी को बराक ओबामा से बेहतर नेता बताया था। तालिब ने राहुल के बारे में कहा कि ‘उन्हें (राहुल को) समस्याओं का बखूबी इल्म है और उन्हें यह भी मालूम है कि इन समस्याओं की जड़ें कहां है? जबकि बराक ओबामा ऐसे लोगों से घिरे हैं जिन्हें किंचित मालूम भी नहीं है कि आखिर समस्या है कहां?’ अगर कोई ऐसी बात कहे तो राहुल भला क्यों न फिसले-दिल तो बच्चा है जी!

 
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