“एम” फैक्टर का चक्कर

September 25 2012


ममता की दीदीगिरी चाहे इस बार यूपीए सरकार को केंद्र से नहीं उखाड़ पाई हो पर दीदी ने सरकार के खिलाफ खतरे का बिगुल ारूर बजा दिया है। यह तो गनीमत मनाइए कि यूपी के दो जातिवादी नेताओं में केंद्र सरकार को बचाने की एक घोर प्रतिद्वंद्विता छिड़ गई है। सरकार बचाने के दोनों के बढ़-चढ़ कर दावे हैं। कुछ बदले से इरादे हैं। मायावती अभी तुरंत मध्यावधि चुनाव नहीं चाहती हैं। वह यूपी में और बदनाम होने के लिए अखिलेश सरकार को कम से कम 6 महीने का वक्त देना चाहती हैं। वहीं मुलायम तीन मुख्य एजेंडों पर काम कर रहे हैं। एक तो उनकी नार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है इसके लिए वो तीसरे या चौथे मोर्चे के गठन की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। वहीं उनका शॉर्ट टर्म गोल अपने सारे परिवार के सदस्यों को सीबीआई के शिकंजे और कानूनी पचड़ों से मुक्त कराना भी है। चुनांचे इसके लिए केंद्र में सत्तारूढ़ दल से अच्छे संबंध बनाए रखना उनकी मजबूरी भी है। इसके अलावा केंद्र सरकार को समर्थन की एवा में मुलायम अपने गृह राज्य यूपी के लिए केंद्र से कुछ बड़े पैकेज की आस लगाए बैठे हैं।

 
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