एंडरसन की रिहाई का सौदा हुआ था

June 22 2010


भोपाल गैस त्रासदी की यादें जैसे चुभन बनकर हर वक्त कांटों का अहसास कराती रहेगी, पर देश के बड़े हुक्मरानों के लिए यह बेहद मामूली सी घटना है। तभी तो हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (अब दिवंगत) 11 जून 1985 को जब वे अपनी अमरीका यात्रा पर थे तो उन्होंने एक ‘गुडविल जेस्चर’ के तहत अपने बचपन के दोस्त अदिल शहरयार को अमरीका की जेल से छुड़वा लिया था। जिन पर अमरीका में 35 साल की सजा मुकर्रर थी, हैरत की बात देखिए कि यह सब भोपाल गैस कांड के सबसे बड़े मुजरिम वॉरेन एंडरसन की रिहाई के मात्र छह महीने 4 दिन बाद हुआ था। (इस एंडरसन को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मात्र 25 हजार रुपयों के मुचलके पर छोड़ दिया था।) तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने भी तब एक तरह से राजीव गांधी को भाव-भंगिमाओं में समझा दिया था कि बस ऐसी चलती रहनी चाहिए सियासत कि मैं तुहारी पीठ खुजलाऊं और तुम मेरी…यानी एंडरसन के बदले ही शहरयार को छोड़ा गया था, यह भी कोई कहने सुनने की बात थी। और बाद में उसी अदिल शहरयार को राजीव अपने विशेष सरकारी विमान से स्वदेश वापिस लेकर आए। शहरयार के पिता मोहम्मद युनुस गांधी-नेहरू परिवार के सबसे खास लोगों में शुमार होते थे। श्रीमती गांधी ने ही युनुस को अपनी सरकार का घुमंतु एंबेसडर और बाद में ट्रेड फेयर ऑथरिटी का चैयरमैन भी बनाया था। युनुस के बेटे शहरयार ने धोखाधड़ी से फायर एश्योरेंस के पैसे हासिल करने चाहे थे, यानी आग लगे बिना आग का मुआवजा चाहिए था उन्हें, और भोपाल में इतनी भयंकर आग लगी मानवता में कि हजारों घरों के चिराग हमेशा के लिए बुझ गए, पर कौन देगा मुआवजा…? चुगने वाले तो ऊपर ही ऊपर सारी गर्मी चुग बैठे, हमने जलाई थी आग पर मुट्ठी आई राख!

 
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