राहुल की ताजपोशी में विलंब क्यों? |
February 07 2021 |
सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी इस बात को लेकर खासे खफा हैं कि पार्टी के सीनियर नेतागण अब भी उनको यथोचित गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, यही बात है जो राहुल को खाए जा रही है, जब तक अहमद पटेल जीवित थे तो वे सीनीयर नेताओं और राहुल के बीच एक संवादसेतु का काम करते थे, क्योंकि सीनीयर नेताओं की राहुल से एक आम शिकायत रहती है कि राहुल उन्हें मिलने का वक्त नहीं देते हैं, उन्हें राहुल से मिलने के लिए अलंकार सवाई और कौशल विद्यार्थी की चिरौरी करनी पड़ती है। जब तक अहमद पटेल जीवित थे तो वे कायदे से उनकी बातों को सुनते थे और उसके सार राहुल तक पहुंचा देते थे, पटेल की गैर मौजूदगी सीनियर नेताओं को खूब खल रही है। कहते हैं जब पिछले दिनों सोनिया ने इस बाबत राहुल को समझाने का यत्न किया तो राहुल रूठ कर अचानक से इटली चले गए। सीनियर नेताओं की यह भी शिकायत रहती है कि पार्टी के नीतिगत फैसलों में उन्हें शामिल नहीं किया जाता, किसान आंदोलन के दौरान भी सिर्फ राहुल और प्रियंका ने आपस में विचार-विमर्श कर यह तय कर लिया कि राहुल राष्ट्रपति को ज्ञापन देने जाएंगे और प्रियंका गिरफ्तारी देगीं। कई सीनियर नेताओं की शिकायत है कि राहुल भरी मीटिंग में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से अभद्र टोन में बात करते हैं। राहुल भी सीनियर नेताओं के व्यवहार को लेकर कहीं गहरे आहत हैं, उन्हें लगता है कि सीनियर्र अपने को तुर्रम खां समझते हैं, पार्टी के युवा नेताओं मसलन सचिन, जितिन, मिलिंद आदि को लेकर राहुल के मन में शक बना रहता है कि ये बीजेपी के टच में रहते हैं। सो, राहुल को कहीं न कहीं अपना अकेलापन सालता है, सो उनका यह बयान कि ’भले ही अकेला रह जाऊं, मैं सच बोलूंगा, मुझे परवाह नहीं, मेरे पास कुछ छिपाने को नहीं,’ उनके इसी दर्द को आवाज देता है। |
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