सिद्दारमैया को कुर्सी मिलने में देर क्यों हुई?

May 28 2023


यह तो कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने से पहले ही सबको पता था कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई तो ताज सिद्दारमैया के सिर ही सजेगा। एक तो वे प्रदेश की 36 फीसदी ओबीसी जातियों के सबसे बड़े नेता हैं, वे जिस कुरूबा जाति से आते हैं राज्य में इस जाति का प्रतिशत भी 7 फीसदी से ज्यादा है। और सौ बात की एक बात कि वे मुख्यमंत्री के रूप में राहुल गांधी की पहली पसंद हैं। पर कांग्रेस का एक गुट ऐसा भी था जो लगातार डीके शिवकुमार की वकालत करता रहा। उसके पक्ष में लगातार कदमताल करता रहा। इस गुट की अगुवाई राहुल प्रिय के सी वेणुगोपाल और कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला कर रहे थे। यह देख कर्नाटक कांग्रेस के विधायक जी परमेश्वर अपने समर्थकों के साथ मैदान में उतर आए और डिप्टी सीएम पद की मांग करने लगे। कांग्रेस ने इन सारी परिस्थितियों को भांपते हुए अपने आब्जर्वर सुशील कुमार शिंदे को यह जिम्मेदारी सौंपी कि ’वे तत्काल इस मामले को निपटाएं।’ शिंदे ने आनन-फानन में अपनी रिपोर्ट हाईकमान को सौंप दी और कहा कि ’यदि जल्दी ही सिद्दारमैया का नाम सीएम के लिए घोषित नहीं किया गया तो वे बागी हो सकते हैं क्योंकि भाजपा व जेडीएस के कुछ नेता उनके निरंतर संपर्क में हैं, सो कांग्रेस के कुल 135 में से 96 विधायक लेकर वे अलग हो सकते हैं और भाजपा के समर्थन के साथ अपनी सरकार बना सकते हैं।’ ऐसे में डीके के साथ गिनती के 32 विधायक ही रह गए थे। इसके साथ ही राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अपने संन्यास की घोषणा करने वाले महाराष्ट्र के दलित नेता सुशील कुमार शिंदे की कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में वापसी भी हो गई है।

 
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