’उड़ने का हुनर कहां मालूम था, तो जेब में तितलियां भर कर चले
आसमां-आसमां तुम खेलते रहे, और हम हवाओं संग उड़ चले’
26 जनवरी को जैसे ही किसानों का आंदोलन उग्र होकर बेपटरी हुआ या कर दिया गया, तो मजमून भांपते योगी सरकार ने प्रशासन से आनन-फानन में गाजीपुर बॉर्डर खाली कराने को कहा, किसान नेता राकेश टिकैत प्रशासन से हाथ जोड़ कर गुजारिश कर रहे थे कि उन्हें बॉर्डर खाली करने के लिए एक-दो दिन का वक्त दिया जाए। पर इसी बीच केंद्र सरकार के रणनीतिकारों ने राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत से अपने तार जोड़ लिए। नरेश टिकैत बालियान खाप पंचायत के मुखिया होने के साथ-साथ भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, सो नरेश टिकैत ने 27 तारीख को आनन-फानन में आंदोलनकारी किसानों के समक्ष यह फरमान जारी कर दिया कि किसान अपने-अपने घरों को लौट जाएं, क्योंकि भानु प्रताप सिंह गुट ने भी किसानों से यही आह्वान कर रखा था, अपने नेताओं के आह्वान पर किसान अपने-अपने घरों को लौटने लगे। वहीं सिंधु और टीकरी बॉर्डर पर जमे किसानों की नज़र टिकैत बंधुओं पर टिकी थी, इसी बीच राकेश टिकैत की रोते हुए वीडियो वायरल हो गई, इस वीडियो को देख वेस्टर्न यूपी के किसान पुनः धरना स्थल की ओर वापिस लौटने लगे, नरेश टिकैत को तब पासा पलटता हुआ दिखा तो उन्हें शुक्रवार को मुजफ्फरनगर के किसान महापंचायत में भरे मन और द्विविधाग्रस्त अवचेतन से यह घोषणा करनी पड़ गई कि ‘मेरे भाई के आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे।’ इसके बाद हजारों की तादाद में किसान वापिस दिल्ली की ओर कूच करने लगे, यह एक ऐतिहासिक भीड़ थी, किसानों की एकजुटता के सियासी मायने निकाले जाने लगे। पश्चिमी यूपी के जाट किसानों के इतने भारी उत्साह को देखते हुए सोशल मीडिया पर यह दावा होने लगा कि वीएम सिंह और भानु प्रताप की किसान राजनीति खतरे में आ गई है, पर नरेश टिकैत के आखिरी वक्त का पैंतरा उनके काम आ गया।