’शफ्फाक तेरा ये चेहरा जमाने की नई रोशनी से अलमदार है
किस्से-कहानियों में कहां बयां होता तेरा जो नया किरदार है’
किसे मालूम था कि दिल्ली के झिलमिल कॉलोनी से झिलमिला कर संघ की सीढ़ियां चढ़ने वाला नई सोच का यह मेकेनिकल इंजीनियर एक दिन संगठन की इतनी महती जिम्मेदारियां संभालेगा। 57 वर्षीय संघ के संयुक्त महासचिव अरूण कुमार को जब कृष्ण गोपाल जैसे दिग्गज को रिप्लेस कर चुनावी वर्ष में प्रवेश करने वाले यूपी का कोऑर्डिनेटर बनाया गया तो सियासी दीवार पर लिखी इबारत को किंचित साफगोई से पढ़ा जा सकता था कि यूपी को लेकर संघ और भाजपा दोनों की पेशानियों पर बल हैं। अरूण कुमार को आप दत्तात्रेय स्कूल का ही एक झंडाबरदार मान सकते हैं, जो अपनी सोच और अप्रोच दोनों में ही ज्यादा प्रगतिशील दिखते हैं। संघ की मान्य परंपराओं से अलहदा अरूण कुमार को आज भी अपने टेबलेट पर ऑनलाइन रहना ज्यादा पसंद है, टैब पर ही वे अपनी पसंद का साहित्य पढ़ते हैं, काम की खबरें देखते हैं और गाहे-बगाहे सामाजिक चिंतन से जुड़े आंकड़ों को भी खंगालते हैं। इन्हें जम्मू-कश्मीर मामलों का एक्सपर्ट माना जाता है, सन् 2008 में ये तब सुर्खियों में आए थे जब जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री गुलाब नबी आजाद ने ‘अमरनाथ श्राइन बोर्ड’ को भंग कर दिया था, ये अरूण कुमार ही थे जिन्होंने उस विरोध प्रदर्शन को एक आंदोलन में तब्दील कर दिया था। ईनाम के तौर पर संघ ने 2016 में इन्हें अपना ऑल इंडिया प्रचार प्रमुख बनाया, सुरेश सोनी की जगह ज्वॉइंट जनरल सेक्रेटरी बना कर संगठन में इनकी महत्ता को प्रतिपादित किया गया और 2015 से भाजपा और संघ में समन्वय बिठाने का जो काम कृष्ण गोपाल देख रहे थे, वह इनके हवाले कर दिया गया है। एक बाल स्वयंसेवक के रूप में संघ से जुड़ने वाले अरूण कुमार के समक्ष असली चुनौती योगी आदित्यनाथ और भाजपा हाईकमान के बीच सामंजस्य बिठाने की रहेगी, यही ककहरा उन्हें कंठस्थ करना होगा।