ग्रामोन्मुखी होगा तीसरा आम बजट

December 27 2015


सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री इस बात को लेकर खासे व्यथित हैं कि कांग्रेस की अगुवाई में संयुक्त विपक्ष ने उनकी सरकार की इमेज को किसान विरोधी और गांव विरोधी साबित करने में जुटा है। सूत्र बताते हैं कि अपनी रूस-अफगानिस्तान यात्रा से पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने काबिल वित्त मंत्री को बुला उनके साथ एक लंबी जद्दोजहद की, और इस बात की रूपरेखा तय की गई कि जेटली के तीसरे आम बजट का स्वरूप कैसा होगा? एक तरह से इस मीटिंग में यह तय हो गया कि मोदी सरकार का अगला बजट शहरी भारत के लिए मारक और कष्टकारी साबित हो सकता है। चूंकि टैक्स रिकवरी की रफ्तार पूरे फाइनेंशियल ईयर में बहुत सुस्त रही, न तो विदेशी निवेश उम्मीद के अनुरूप आए और न ही विनिवेश की गाड़ी ही उस रफ्तार में आगे बढ़ पाई। जबकि सरकार के ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। केवल सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार को एक लाख करोड़ रूपयों से ज्यादा की रकम चाहिए। रेल और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर अब तक मोदी सरकार ने पानी की तरह पैसा बहाया है, जबकि ग्रामीण भारत की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई गई है। आने वाले समय में यूपी, वेस्ट बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं, जहां का हर 10 में से 6 वोटरों गांवों में रहता है। मोदी को इस अनदेखी का पाठ बिहार ने पहले ही पढ़ा दिया है, सो नए बजट में खेती-किसानी व गांवों से जुड़ी अनेक योजनाओं पर पैसा लगाया जाएगा, बड़ी फसल बीमा जैसी योजनाओं को सिरे चढ़ाया जाएगा, शहरी भारत को टैक्स और महंगाई की नई मार झेलनी पड़ सकती है। सर्विस टैक्स की दर बढ़ाकर भी 16.5 फीसदी करने की योजना है। यानी अपनी प्रो-अर्बन इमेज से छुटकारा पाने के चक्कर में मोदी सरकार शहरी भारत को नई मुश्किलों में डालने वाली है।

 
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