पीएम से नाराज़ अमेरिका |
September 22 2013 |
क्या मनमोहन सिंह से अमेरिका नाराज़ है? इस 25 सितंबर को प्रधानमंत्री अपने दल-बल के साथ अमेरिका जा रहे हैं, इस दौरे की तैयारियों के सिलसिले में भारतीय राजनयिकों के तब पसीने छूट गए जब अमेरिकी प्रशासन और व्हाइट हाऊस की ओर से उन्हें बताया गया कि भारतीय प्रधानमंत्री के इस दौरे में उनसे मिलने के लिए अमेरिकी राष्टï्रपति बराक ओबामा उपलब्ध नहीं रहेंगे। बड़ी मान-मनौव्वल और मशक्कत के बाद ओबामा मनमोहन से लंच पर 15 मिनट के लिए मिलने के लिए तैयार हुए। दरअसल, अमेरिका की नाराज़गी दो वजहों से ज्यादा है, एक तो उसे लगता है कि भारत के राष्टï्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशेकर मेनन ‘प्रो-चाइना’ और ‘एंटी-अमेरिका’ हैं, दूसरा अमेरिका को लगता है कि न्यूक्लीयर डील को लेकर यूपीए-1 सरकार के दौरान जितना उत्साह दिखाया गया था, यूपीए-2 आते-आते भारत सरकार ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है। डील को भले ही औपचारिक तौर पर गो-अहेड मिल गया हो पर इसके क्रियान्वयन की दिशा में यूपीए-2 कोई प्रयास नहीं कर रही है। पिछले कुछ दिनों से अमेरिका ने खुलकर अपनी नाराज़गी दिखानी शुरू कर दी है, जैसे सीरिया के ताजा मसले को लेकर ओबामा ने रूस, चीन जैसे देशों से बात की पर भारत से बात करना और इस मुद्दे पर उनका समर्थन लेना उन्होंने जरूरी नहीं समझा। ओबामा की बात छोड़ भी दें तो वहां के स्टेट सेक्रेट्री की ओर से भी भारतीय प्रशासन को कोई फोन नहीं आया। दरअसल, अमेरिका की नाराज़गी की असली वजह भारत का अमेरिका की जगह व्यापार के लिए अन्य देशों को महत्त्व देने से है। हालिया रक्षा सौदों में भारत ने अमेरिका की बजाए फ्रांस, जर्मनी व इस्त्रायल जैसे देशों को महत्त्व दिया है। अमेरिकी कंपनी ‘बोइंग’ की जगह फ्रांस की विमानन कंपनी ‘एयर बस’ से कहीं ज्यादा विमानों की खरीददारी हुई है। चीन से द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते हुए हैं, रूस से भारत अपने संबंधों को बेहतर बनाने में जुटा है। ये बातें अमेरिका पचा नही पा रहा है। |
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