प्रवासी मजदूरों के दर्द का सच |
July 12 2020 |
बकौल मुनव्वर राना-‘मुनासिब है कि पहले तुम भी आदमखोर बन जाओ/ कहीं संसद में खाने कोई चावल-दाल जाता है।’ एक जून से 14 जून के लॉकडाउन के दौरान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने प्रवासी मजदूरों पर एक सर्वे किया। इस सर्वे में 84 फीसदी प्रवासी मजदूरों से बात की गई। एक सवाल के जवाब में 84 फीसदी मजदूरों ने कहा कि इस दौरान उनकी कमाई शून्य थी और इनमें से 16 प्रतिशत ने कहा कि कहीं छोटा-मोटा काम करके उन्होंने कुछ पैसे कमाए, रही बात मुफ्त राशन की और मुफ्त गैस की तो लॉकडाउन में सब बंद था, मुफ्त गैस भी सिर्फ ढाई फीसदी को मिली, बाकी को कुछ मिला तो वह थे पुलिसिया डंडे। |
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