’दुलकी चाल से चला, हौंसलों का यह बुलबुला
मंसूबों के अश्वमेध पर, उम्मीदों का है फूल खिला’
पीएम मोदी हमेशा वक्त से आगे की सोचते हैं, शायद इसीलिए अदालती रोक की परवाह किए बगैर उन्होंने नई दिल्ली में नए संसद भवन का भूमि पूजन भी कर दिया और भगवा ललाट पर भविष्य की नई उम्मीदों का तिलक भी कर दिया है। जरा सोचिए तब क्या होगा जब देश में लोकसभा की सीटों को नई परिसीमन का आकार मिलेगा और आबादी के हिसाब से राज्यों को सीटों का प्रतिनिधित्व मिलेगा, तब बिहार की 40 लोकसभा सीटें नए परिसीमन में 70 का आंकड़ा छू सकती हैं और मध्य प्रदेश की मौजूदा 29 सीटें बढ़ कर 50 का आंकड़ा पार कर सकती हैं। वैसे भी मौजूदा दौर में आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों का असंतुलन बना हुआ है, आखिरी बार जब सातवें दशक में सीटों की संख्या तय की गई थी तब सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व देने के सिद्धांत के तहत सीटों का आंबटन हुआ था। पर इसके बाद बढ़ती आबादी की रफ्तार ने यह संतुलन बिगाड़ कर रख दिया, जैसे उत्तर और पूर्वी राज्यों की आबादी सबसे तेजी से बढ़ी, जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों में आबादी बढ़ने की दर स्थिर रही। यही वजह है कि तमिलनाडु की कुल आबादी सात करोड़ से भी कम है और यहां से लोकसभा के 39 सांसद हैं, वहीं मध्य प्रदेश की आबादी साढ़े सात करोड़ से ज्यादा है और यहां सिर्फ 29 सीटें हैं। यूपी में 80 सीटें हैं जबकि यह सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश है, अनुमान लगाएं तो यूपी में 30 लाख की आबादी पर एक सांसद है, वहीं तमिलनाडु में 16-17 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट। अगर इस 16-17 लाख की आबादी को पैमाना माने तो फिर अकेले यूपी में 150 सीटें बनानी होंगी। राजस्थान जैसे प्रदेश को भी कम से कम 50 सीटें देनी होंगी। इसका एक तरीका यह भी हो सकता है कि ज्यादा आबादी वाले राज्यों का बंटवारा हो, जैसा बीजेपी यूपी के संदर्भ में सोच रही है। नया संसद भवन जो अक्टूबर 2022 तक बन कर तैयार हो सकता है, उसमें लोकसभा के कुल 880 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी, जिसे बढ़ा कर 1224 तक किया जा सकता है, वर्तमान संसद भवन में यह क्षमता मात्र 550 सदस्यों के बैठने की है। मौजूदा राज्यसभा में 250 सांसदों के बैठने की व्यवस्था है, नए संसद भवन में राज्यसभा के 332 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है। हालांकि संसद में सीटों की संख्या बढ़ाने पर 2026 तक रोक लगी हुई है, पर बहुमत की सरकार जब चाहे इस फैसले को बदल सकती है, आबादी और लोकसभा सीटों की संख्या को आधार बना कर मोदी सरकार नया परिसीमन कानून बना सकती है। वरिष्ठ पत्रकार और संपादक अजित द्विवेदी कहते हैं कि कायदे से 2021 की जनगणना को आधार बना कर यह किया जा सकता था, पर कोरोना की वजह से 21 की जनसंख्या ही शुरू नहीं हो पाई है, पर सरकार चाहे तो एक साल की देरी से भी यह मुकम्मल कर सकती है। यानी 2024 के चुनाव नए परिसीमन वाले सीटों के आधार पर हो सकते हैं, तब दक्षिण की सीटें चाहे उतनी ही रह जाएं, पर उत्तर और पूरब की सीटों में खासा इजाफा हो सकता है और भाजपा के लिए सबसे मुफीद भी शायद यही है।