सुशासन बाबू के बिहार में षासन लापता है |
April 02 2018 |
सुशासन बाबू के बिहार में षासन लापता है और नफ़रत की चिंगारियां भड़क रही हैं, अगर मौजूदा हालात को मुनव्वर राना के अल्फाजों का लिबास पहना दें तो अक्स कुछ ऐसा उभरता है-’ये देख कर पतंगें भी हैरान हो गईं, अब तो छतें भी हिंदू-मुसलमान हो गईं/ क्या षहर-ए-दिल में जष्न-सा रहता था रात-दिन, क्या बस्तियां थीं, कैसे बियाबान हो गईं।’ षासन के हौंसलों पर ताले हैं और नीतीष सरकार के कई मंत्रिगणों की जुबाने आग उगल रही हैं। सूत्रों की मानें तो अब नीतीष को भी अपनी खिसकते अस्मिता का खौफ होने लगा है, अपने करीबियों से वे इस बात पर मंत्रणा करने लगे हैं कि आखिरकार भाजपा का हमसफर बन और कितना रास्ता तय किया जा सकता है? नीतीष के एक करीबी की बातों पर अगर यकीन करें तो नीतीष ने भाजपा को बाय-बाय कहने का पूरा मन बना लिया है, इंतजार बस एक माकूल वक्त का है। नीतीष एक बार फिर से महादलित, अतिपिछड़ा और अगड़े वोट बैंक को एकजुट करने में जुट गए हैं। इस बाबत केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान से उनकी एक बेहद गोपनीय मुलाकात इन कयासों को पंख लगाते दिखती है कि अब बस नीतीष भाजपा को अलविदा कहने के बहाने ढूंढ रहे हैं। रामविलास पासवान के भाई पषुपति पारस को पहले विधान परिशद का सदस्य फिर अपनी सरकार में मंत्री बनाने का नीतीष का फैसला दूरगामी सोच से ओत प्रोत था। नीतीष के भाजपा कनेक्षन सुषील मोदी की षाह व मोदी के समक्ष वैसे ही घिग्गी बंधी रहती है, एक नीतीष करीबी का कहना है कि ’हमें सुषील मोदी की सियासी धमक का अंदाजा उसी रोज हो गया था, जब 2016 में राज्यसभा भेजे जाने के लिए चार लोगों के नामों की सूची अमित षाह को भेजी गई थी, इसमें पहले नंबर पर सुषील मोदी का नाम था और चौथे नंबर पर गोपाल नारायण सिंह का, षाह ने सुषील मोदी का नाम काट कर गोपाल नारायण का नाम लिख दिया और उन्हें राज्यसभा में लेकर आ गए।’ नीतीष और भाजपा की दोस्ती में 2019 का आगामी आम चुनाव भी आड़े आ रहा है, कभी राज्य में भाजपा जदयू की जूनियर पार्टनर हुआ करती थी, तब जदयू राज्य के 40 में से 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारती थी और 15 सीटें भाजपा के लिए छोड़ देती थी। पर अब बदले सियासी हालात में भाजपा नीतीष के लिए मात्र 8-10 सीटें छोड़ने का इरादा रखती है, जिसके लिए नीतीष किंचित तैयार नहीं, इसके बजाए वे रामविलास पासवान की पार्टी के साथ मोर्चा बना लोकसभा चुनाव में जाना पसंद करेंगे, पर भाजपा है कि वह किसी भी कीमत पर नीतीष को अपने पाले से बाहर नहीं निकलने देना चाहती, सो नीतीष को मनाने के हर भगवा उपक्रम जारी रहेंगे, बिहार के चेहरे पर भले ही जख्मों के निषान उभर रहे हों पर सियासत तो उस औरत का दुपट्टा है जो किसी के आंसुओं से तर नहीं होता। |
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