लाल के गढ़ में केसरिया चुनौतियां

March 11 2017


5 राज्यों के हालिया विधानसभा नतीजों के बाद से निरंतर भगवा आकांक्षाएं नया हिलोर मार रही हैं। भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित षाह 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अब ऐसे सुदूर और छोटे राज्यों पर फोकस कर रहे हैं जहां कभी कमल के प्रस्फुटन के लिए माहौल उतना केसरिया नहीं था। पहले असम में भगवा सरकार, फिर मणिपुर में जानदार प्रदर्षन और अब सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए टीम अमित षाह केरल और त्रिपुरा जैसे राज्यों पर फोकस कर रही है। त्रिपुरा में लगभग हर षाम भाजपा के लोग एक यात्रा निकालते हैं, जिसमें न सिर्फ भगवा इरादों के परचम लहराए जाते हैं अपितु इस यात्रा को षक्ल देने वाले स्थानीय युवा मोदी-मोदी का गगनभेदी उद्घोश करते चलते हैं। भले ही त्रिपुरा में कमान वामपंथ के आखिरी गढ़ को बचाने की चुनौती में डूबे मानिक सरकार के पास है और वहां विधानसभा चुनाव में भी भले ही अभी साल भर की देर हो, भाजपा की सक्रियता को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि 2019 के आम चुनाव में मोदी के लिए एक-एक सीट किस हद तक महत्वपूर्ण हो गई है। हालांकि वामपंथी अभी से आरोप हवा में उछालने लगे हैं कि त्रिपुरा के गवर्नर की पृश्ठभूमि भगवा रही है, चूंकि ये तथागत राय कभी बंगाल भाजपा के प्रमुख हुआ करते थे और इन्होंने अपने जीवन में सियासी ककहरा वामपंथी के गढ़ पष्चिम बंगाल में ही सीखा है, सो उन्हें वामपंथ की खूबियां भी मालूम है और कमजोरियां भी। पर प्रदेष भाजपा इस राजनैतिक लड़ाई का कीचड़ महामहिम के दामन पर नहीं लगाना चाहती, उसका कहना साफ है कि वामपंथी हताषा में ऐसी बातें कह रहे हैं।

 
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