पिंक क्रांति की केसरिया उड़ान

January 03 2015


प्रधानमंत्री मोदी भले ही एक ओर ‘इलेक्शन मोड’ से बाहर निकलने की जद्दोजहद करते दिख रहे हों, वहीं उनके कई काबिल कैबिनेट साथियों ने तो उनके चुनावी वायदों के परचम से कागज की नाव बना ली है, और वे उसी से सियासी मंझधार को पार करने का इरादा रखते हैं। अपनी चुनावी सभाओं में मोदी ने बढ़-चढ़ कर दावा किया था कि वे पिंक मीट यानी गऊ मांस के निर्यात को हत्तोसाहित करेंगे यदि केंद्र में उनकी सरकार आई तो, इसके लिए वे टैक्स प्रावधानों को और कड़ा बनाने की वकालत करते भी देखे गए। पर पिछले दिनों संसद में वाणिज्य व उद्योग राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार निर्मला सीतारमण ने पिंक मीट के एक्सपोर्ट को लेकर संसद में जो आंकड़े पेश किए उससे साफ जाहिर होता है कि मोदी सरकार के छह महीनों में पिंक मीट क्रांति पर ब्रेक लगना तो दूर, उसके एक्सपोर्ट की रफ्तार दोगुनी हो गई है। 2013-14 के वित्तीय वर्ष में जहां 27163.01 करोड़ रुपयों की कीमत वाले 1389018 मीट्रिक टन पिंक मीट का निर्यात हुआ, वहीं वित्तीय वर्ष 2013-14 के (अप्रैल-सितंबर) मात्र छह महीने में 703535 मीट्रिक टन व 13945.34 रुपयों का पिंक मीट निर्यात हुआ। यह आंकड़ा यकीनन चौंकाने वाला है। संघ व हिंदुवादी संगठनों के एजेंडे से उलट मोदी सरकार के कुछ काबिल मंत्री इस गऊ मांस व्यापार इंडस्ट्री की खुली हिमायत करते देखे गए। इनका मानना है कि इस दो लाख करोड़ रुपयों वाली इंडस्ट्री से सरकार को तकरीबन 17 हजार करोड़ की राजस्व प्राप्ति होती है, यानी जब तक सरकारी खजाने में पैसा आता है कोई व्यापार बुरा नहीं है, तंबाकू व शराब के मानिंद ही महज चंद वैद्यानिक चेतावनियों के साथ भारत से भी पिंक मीट एक्सपोर्ट यूं ही फलता-फूलता रहेगा।

 
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