इसीलिए गडकरी मिट्टी पे बैठ जाते हैं अक्सर

November 06 2016


नई दिल्ली का परिवहन भवन। यहीं पांचवीं मंजिल पर अवस्थित है केंद्रीय भूतल परिवहन व शिपिंग मंत्री नितिन गडकरी का कार्यालय। गडकरी के कमरे के साथ लगे प्रतीक्षा कक्ष की दीवारों पर कवि हरिवंश राय बच्चन की एक कविता फ्रेम करके लगाई गई है, इसकी चंद पंक्तियां हैं-’एक अजीब सी दौड़ है ये जि़ंदगी, जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं, और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं, बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर…क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है…।’ लिहाज़ा जिंदगी की तरह गडकरी के सियासत का अंदाज भी निराला है-बिंदास व बेपरवाह। उन्हें इस बात की भी फिक्र नहीं कि नए निज़ाम के दस्तूर भी कितने नए हैं, सो जब वे अपने एक विश्वासपात्र अधिकारी को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में मेंबर ट्रैफिक रखवाना चाहते थे तो पीएमओ की ओर से कुछ अड़चनें आ गईं। अभी ये मामला और तूल पकड़ता कि सरकार के प्रमुख को संघ प्रमुख का फोन आ गया, ’ अच्छे अधिकारी हैं, विदर्भ के हैं, संघ के विश्वासपात्र हैं, इनका कीजिए।’ और इसके अगले ही कुछ रोज़ में उस अधिकारी की नियुक्ति को हरी झंडी मिल गई। बच्चन की पंक्तियां चरितार्थ हो उठीं और नितिन गडकरी का अक्स उन शब्दों में झिलमिलाने लगा-’अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे। क्योंकि जिसकी जितनी जरूरत थी। उसने उतना ही पहचाना मुझे।’

 
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