स्वामी फिर से एक गुप्त मिशन पर |
December 19 2016 |
मोदी सरकार में चंद ठिठके हुए फैसलों को नया चेहरा मिल सकता है। मसलन अतिवादी सक्रियता की मिसाल सुब्रह्मण्यम स्वामी से कहते हैं प्रधानमंत्री ने कभी वादा किया था कि वे उनको अपनी कैबिनेट में सुशोभित करेंगे। पर वक्त गुजरता गया और फैसला टलता रहा। सूत्र बताते हैं कि स्वामी की पिछले दिनों पीएम से एक अहम मुलाकात हुई और समझा जाता है कि उन्हें एक महती जिम्मेदारी सौंपी गई है कि उन्हें केंद्र सरकार व न्यायपालिका के रिश्तों में आई खटास को दूर करना है। इस बात के पहले से साफ संकेत मिल रहे हैं कि अटार्नी जनरल और उनकी टीम के कामकाज से पीएमओ किंचित खुश नहीं, नए अटार्नी जनरल के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पसंद के एक व्यक्ति के नाम को लगभग हरी झंडी मिल चुकी है। बस इंतजार एक सही वक्त का है, जब मौजूदा अटॉर्नी जनरल को बाहर का रास्ता दिखाया जा सके। सूत्र बताते हैं कि स्वामी को इस बात की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे न्यायपालिका के शीर्ष से संवाद सेतु कायम करें। सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर का कार्यकाल 3 जनवरी को खत्म हो रहा है, इसके बाद जस्टिस केहर को पद भार संभालना है। कहते हैं न्यायपालिका के नए निज़ाम से पूर्व कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज की काफी अच्छी बनती है, भारद्वाज से स्वामी की दोस्ती काफी पुरानी है। चुनांचे वे नए निज़ाम का भरोसा जीतने के लिए अपने पुराने मित्र भारद्वाज की मदद ले सकते हैं। वैसे भी केंद्र सरकार व न्यायपालिका में आई खटपट की वजह से कहीं न कहीं जजों की नियुक्तियों पर भी विराम लग गया है। सुप्रीम कोर्ट में अभी भी जजों के सात पद रिक्त पड़े हैं, हाईकोर्ट में तो आधे से ज्यादा (तकरीबन 50) जजों के पद खाली पड़े हैं। स्वामी अगर इन अवरोधों पर विजय पाने में कामयाब रहते हैं तो उन्हें देष के अगले कानून मंत्री के तौर पर देखा जा सकता है। |
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