कब तक चलेगा किसान आंदोलन? |
December 13 2020 |
’जब तक बोते रहे उम्मीदें, फसलें खुशनुमा मौसम की तरह लहलहाईं अन्नदाताओं के जोष और जज्बे ने सत्ताशीर्ष को सुनने की आदत डाल दी है, चूंकि संवाद बना हुआ है सो, किसान और सरकार दोनों ही एक-दूसरे की सुन रहे हैं। सरकार को उम्मीद है कि कुछ रोज में किसान मान जाएंगे, क्योंकि किसानों की 15 में से 12 मांगें मानने को सरकार तैयार है, इसके लिए एक संशोधन विधेयक भी लाया जा सकता है, पर किसान चाहते हैं कि इस कृषि बिल को ही नेस्तनाबूद कर दिया जाए, दूसरी ओर सरकार संकेत देना चाहती है कि ’न तुम जीते, न हम हारे’। राकेश टिकैत जैसे नेता सरकार और किसान में संवाद सेतु का काम कर रहे हैं, तभी तो शुक्रवार को टिकैत एक ट्वीट करते हैं-’थोड़ा किसान पीछे हटे, थोड़ी सरकार पीछे हटे।’ पर किसान आंदोलन की बुनियादी रूप रेखा तैयार करने वाला संगठन ’आल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति’ टिकैत की राय से इत्तफाक नहीं रखता। दुर्भाग्यवश किसानों के तीन बड़े नेता डॉ. सुनीलम, राजू शेट्टी और वी एम सिंह कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। सो, टिकैत और योगेंद्र यादव जैसे मीडिया फ्रेंडली नेतागण फिलहाल मंच लूट रहे हैं, पर दूर-सुदूर पंजाब, बिहार, यूपी, तेलांगना, मध्य प्रदेश व हरियाणा के गांवों से किसानों के आने का तांता लगातार बना हुआ है। किसानों की नाराज़गी के केंद्र में अडानी और अंबानी जैसे शीर्ष उद्योगपति भी बने हुए हैं। किसानों के सवाल हैं कि कृषि कानून संसद में 2020 में पारित हुए, पर 2018 में ही अडानी ने इन कार्यों के लिए 12 कंपनियां और कई साइलोज (जहां अन्न का भंडारण होता है) बना लिए, किसान पूछते हैं कि क्या इन उद्योगपतियों को पहले से पता था कि कोई ऐसा कृषि कानून आने वाला है? एफसीआई के बड़े-बड़े गोदाम अडानी ने पहले ही लीज पर ले लिए, मगर कैसे? मीडिया का एक वर्ग प्रचार कर रहा है कि किसानों के इस आंदोलन को अतिवादी नेताओं का समर्थन हासिल है, मोदी सरकार के एक मंत्री तो इससे भी दो कदम आगे बढ़ का दावा करते हैं कि किसानों के आंदोलन को चीन और पाकिस्तान से मदद मिल रही है। |
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