कैसे काबू में आईं शशिकला

March 31 2021


संघ रणनीतिकार एस.गुरूमूर्ति ने तमिलनाडु में भगवा आकांक्षाओं को चेहरा-मोहरा देने का काम शुरू कर दिया है। गुरूमूर्ति की सबसे बड़ी सफलता अम्मा की सहेली शशिकला को राजनीति से संन्यास लेने को प्रेरित करना है। सूत्रों की मानें तो पहले गुरूमूर्ति चाहते थे कि शशिकला के भतीजे दिनाकरण अन्नाद्रमुक में अपनी पार्टी का विलय कर दें और शशिकला की भी घर वापसी हो जाए, पर इस बात के लिए न पनीरसेल्वम और न ही पलानीस्वामी राजी हुए। शशिकला थेवर जाति से ताल्लुक रखती हैं, तमिलनाडु में इस जाति का वोट शेयर लगभग 10 फीसदी है। डीएमके और एआईडीएमके इन दोनों पार्टियों की नज़र इस वोट बैंक पर है, क्योंकि राज्य के 38 विधानसभा सीटों पर थेवर वोट निर्णायक होते हैं। शशिकला की रिटायरमेंट की खबर इसीलिए भी चौंकाने वाली थी कि कोई 10 दिन पहले ही शशिकला और टीटीवी दिनाकरण ने 2017 की उस याचिका को दुबारा खोलने की बात कही थी जिसमें अन्नाद्रमुक के नेतृत्व के फैसले को लेकर पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम दोनों घिरने वाले थे। भाजपा को यह भी लगता था कि अगर शशिकला दिनाकरण की पार्टी का प्रचार करती रही तो 60-70 सीटों पर इसका असर पड़ सकता है। पिछले 10 वर्षों में दिनाकरण की कुल संपत्ति 3.48 करोड़ से बढ़ कर 11.19 करोड़ रूपए हो गई है। शशिकला की 200 करोड़ रूपए से ज्यादा संपत्ति की जांच पहले ही ईडी और इंकम टैक्स विभाग कर रहे हैं। बेनामी संपत्तियों में शशिकला उनकी भाभी जे आईलवारसी, भतीजे वीएन सुधाकरण की भी 2000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का अलग से मामला है। सो, शशिकला को साध कर भाजपा ने एक बड़ा दांव चला है, थेवर वोट अगर अन्नाद्रमुक के पाले में आ जाते हैं तो भाजपा का अपना ब्राह्मण और अगड़े वोटों पर असर है। वहीं दूसरी ओर डीएमके को कांग्रेस, लेफ्ट, पीएमके समेत कई अन्य छोटे दलों के लिए भी सीटें छोड़नी पड़ रही हैं। पीएमके का असर वानियार जाति पर है। भाजपा कम समय में ही इन जातीय गणित को बूझ गई है।

 
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