संघ को मिलेगा नया चेहरा |
October 21 2014 |
भाजपा व संघ के अंतर्संबंधों को एक नई परिभाषा देने की जद्दोजहद शुरू हो चुकी है। कृष्ण गोपाल ने संबंधों को एक बदला कलेवर देने के लिए अपनी रणनीति बुन ली है, और उनकी इस रणनीति में पक्के तौर पर मोहन भागवत की उदात्त महत्त्वाकांक्षाएं भी समाहित हैं। सनद रहे कि अब से पहले तक संघ व भाजपा में तालमेल का संपूर्ण जिम्मा सुरेश सोनी का था, पर भाजपा में उनको इतने चाहने वाले थे कि वे संघ की बजाए भाजपा की ज्यादा पैरवी करते दिखते थे, उनकी इसी आदत से भागवत उनसे नाराज रहा करते थे। सुरेश सोनी को जब लगा कि उनका अब अपने पद पर बने रहना मुश्किल है तो उन्होंने अपनी जगह दत्तात्रेय होसबोले को भाजपा का इंचार्ज बनाए जाने की वकालत की, सनद रहे कि दत्तादेत्र की निगाहें कहीं दूर की कौड़ी पर हैं और भाजपा में भी उनको चाहने वालों की एक लंबी फेहरिस्त है। समझा जाता है कि अनंत कुमार को अपने मंत्रिमंडल में रखने के लिए मोदी तैयार नहीं थे, वह तो दत्तात्रेय के दबाव बनाने पर मोदी अनंत को अपने कैबिनेट में शामिल करने को राजी हुए, पर इस शर्त के साथ कि दत्तात्रेय अमित शाह को पार्टी अध्यक्ष बनवाने के लिए संघ के शीर्ष नेतृत्व में सर्वानुमति बनाने का काम करेंगे। क्योंकि स्वयं सर संघ चालक मोहन भागवत इस राय के बताए जा रहे थे कि प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष को एक ही प्रदेश से नहीं होना चाहिए पर सोनी और दत्तात्रेय के दबाव के आगे भागवत झुक गए। सो, जब सोनी ने भाजपा का प्रभार संभालने के लिए दत्तात्रेय का नाम चलाया तो भागवत ने अपने वीटो का इस्तेमाल करते हुए कृष्ण गोपाल के नाम पर रजामंदी की मुहर लगा दी। भागवत का स्पष्ट तौर पर मानना है कि संघ भाजपा का अनुषांगिक संगठन नहीं है, अत: संघ की ओर से कमान किसी ऐसे नेता के हाथों में होनी चाहिए जो भाजपा नेताओं को आदेश दे सके। कृष्ण गोपाल सोनी के मुकाबले ज्यादा व्यवहार कुशल हैं और उनके भागवत और मोदी दोनों से ही मधुर संबंध हैं। |
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