हेमंत सोरेन को अभयदान कब तक?

September 24 2022


क्या हेमंत सोरेन अपने को देश के एक आदिवासी नेता के तौर पर स्थापित करने में सफल हो गए हैं? उनके मंत्रिमंडल के कई हालिया बड़े फैसले इस बात की चुगली खाते हैं। सोरेन जनता के बीच बहुत हद तक यह नैरेटिव बनाने में भी कामयाब रहे हैं कि देश को एक आदिवासी राष्ट्रपति देने के बाद भाजपा एक आदिवासी सीएम को गद्दी से उतारने के षडयंत्रों में डूबी है। अब इसे सोरेन का मैनेजमेंट कहें या उनकी सफल रणनीति कि इन दिनों भाजपा झारखंड में अपने सबसे कमजोर पिच पर है, न ही उनके पास झारखंड में कोई इतनी माकूल नीति है और न ही कोई बड़ा नेता। शायद सोरेन को भी इन्हीं परिस्थितियों का सहारा मिला हुआ है कि भाजपा चाह कर भी उनकी सरकार को अभी गिरा नहीं पा रही है। क्योंकि झारखंड का असर गुजरात के चुनावों पर भी पड़ सकता है, जहां आबादी के हिसाब से 14.9 प्रतिशत आदिवासी वोटर हैं। साथ ही छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भी आदिवासी वोटरों की एक बड़ी तादाद है। यही वजह है कि सोरेन सरकार को फिलवक्त झारखंड में अभयदान मिला हुआ है।

 
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