’मेरा वजूद यूं राहों में दूर तक बिखरा है
तू मेरा अक्स था मुझसे टूट का बिछड़ा है’
जुलाई माह में नवनिर्मित सेंट्रल विस्टा के शानदार परिसर में नई संसद के शिखर पर कांसे में ढले राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को स्थापित किया गया था, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ था। इसके बाद इन स्थापित शेरों की भंगिमाओं को लेकर सोशल मीडिया पर घमासान छिड़ गया और इस ओर इशारा किया गया कि इन शेरों को बिलावजह ज्यादा गुस्से में दिखाया गया है, कई नेतागण भी इस विवाद में कूद गए, जाहिरा तौर पर सरकार को बचाव की मुद्रा अख्तियार करनी पड़ी। फिर अचानक कोई पखवाड़े पूर्व नई दिल्ली के राजेंद्र प्रसाद रोड की ओर मुंह किए शेर को ढक दिया गया, कारण पूछे जाने पर सीपीडब्ल्यूडी की ओर से कोई जवाब नहीं आया, अब जब शेर के मुंह से कपड़ा हटाया गया है तो आपको यह देख कर हैरानी होगी कि शेर के क्रोधित भंगिमाओं को कम करने के प्रयास हुए हैं, उसका मुंह भी पहले से कहीं छोटा दिखता है। मौजूदा निजाम के इस बदले रुख से इतना तो समझा ही जा सकता है कि वह अब ’करेक्शन मेजर’ पर भी अमल करने को तैयार है, यह उसकी फराखदिली है या मजबूरी? क्या मालूम!